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गाथा : ३६३-३६७ ] अट्टमो महाहियारो
[ ५३१ पण्णासं पणुवीस, तस्सद्धं तद्दलं च चत्तारि । तिणि य प्रवाइज्जं, जोयणया तह कमे गावं ॥३६३ ॥
५० । २५ ३१ । २०१४।३।। अर्थ-उपयुक्त आदिम प्राकारका अवगाढ़ ( नींव ) क्रमशः पचास, पच्चीस, उसका प्राधा ( १२३ यो०), उसका भी आधा ( ६३ यो०), चार, तीन और पढ़ाई (२२) योजन प्रमाण है ॥३६३॥
जं गाढस्स पमारणं, तमिर बहतरूगं मिला ।
आदिम - पायारस्स य, कमसोयं पुश्व • ठाणेस ॥३६४।। अर्थ-पूर्वोक्त स्थानोंमें जो प्रादिम प्राकारके अवगाढ़का प्रमाण है, वही क्रमशः उसका बाहस्य भी जानना चाहिए ॥३६४॥
गोपूर द्वारोंका प्रमाण आदिसक्क-बुगे धचारो, तह तिण्णि सणपकुमार-च-दुगे । बम्हिवे वोण्णि सया, प्राविम-पायार-गोउर-दुवारं ॥३६५।।
४०० । ३०० । २०० इगिसठ्ठी अहिय-सयं, चालोसुत्तर-सयं सयं बोस । ते लंतवादि - तिवए, सयमेषकं प्राणादि - इंवेसु ।।३६६॥
__ '१६१ । १४० । १२० । १०० । अर्थ-आदिम प्राकारोंके गोपुर-द्वार सौधर्मशानमें चार-चार सौ (४०० ), सानत्कुमारमाहेन्द्र में तीन-तीन सौ ( ३००), ब्रह्मकल्पमें दो सो (२००), लान्तवकल्पमें एक सो इकसठ (१६१), महाशुक्रमें एक सौ चालीस ( १४० ), सहस्रारमें एक सौ बीस ( १२० ) और पानत आदि इन्द्रों में एक-एक सो ( १००-१०० ) हैं ।।३६५-३६६।।
चचारि तिणि बोणि य, सयाणि सयमेक्क सट्ठि-संजुत्तं । चालीस - जुबेरक - सयं, वोसम्भहियं सयं एक्कं ॥३६७॥ ४०० । ३०० । २०० । १६० । १४० । १२० । १०० ।
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नोट-गा. ३६७ के अनुसार गा० ३६६ में १६१ के स्थान पर प्रमाण १६० ही होना चाहिए ।