________________
५२८ ] तिलोयपण्णत्ती
[ गाथा : ३५२ अचुद-इंश्य-उत्तर-विसाए एक्करस - सेदिबद्ध सु।
अठ्ठ - सदीतह, पनुन - वस्स पावासो ॥३५२।।
अर्थ-अच्युत इन्द्रककी उत्तर दिशाके ग्यारह श्रेणीबद्धोंमेंसे छठे श्रेणीबद्ध विमान में अच्युत इन्द्रका निवास है ।।३५२॥
विशेषार्ष-प्रथम ऋतुविमानकी प्रत्येक दिशामें ६२ श्रेणीबद्ध विमान हैं. प्रत्येक इन्द्रक प्रति प्रत्येक दिशामें एक-एक श्रेणीबद्ध विमान हीन होता है । प्रथम इन्द्रकमें हानि नहीं है अतः प्रथम कल्पके अन्तिम प्रभ इन्द्रककी एक दिशामें ३२ श्रेणीबद्ध विमान प्राप्त होंगे उनमें से १८ वें श्रेणीबद्ध विमानमें अर्थात् सौधर्म-ईशान कल्पके अतिम इन्द्रक सम्बन्धी दक्षिण दिशागत श्रेणीबद्ध विमानोंमेंसे १८ व श्रेणीबद्ध में सौधर्मेन्द्र और उत्तर दिशा सम्बन्धी ३२ श्रेणीबद्धोंमेंसे १८ वें श्रेणीबद्ध में ईशानेन्द्र निवास करते हैं। इसीप्रकार आगे भी जानना चाहिए । यथा--
क्रमांक
करूप नाम
एक | | प्रत्येक इन्द्रक प्रति हीन होते इन्द्रक संख्या
दिशागत हुए श्रेणीबद्ध विमानों श्रेणीबद्ध
की संख्या
| अन्तिम | इन्द्र के निवास
इन्द्रक | सम्बन्धी सम्बन्धी नगीबद्धों की श्रेणीबद्ध संख्या
सौधर्म कल्प
ईशान कल्प सनत्कुमार माहेन्द्र
३१ । ६२ ६१,६०,५९,५८,५७,५६,५५ .३४,३३| ३२ मैसे
- , -,, - - ३०, २९, २८, २७, २६
२३
२२
लान्तव
[मा० ३४६ में २० मेंसे लिखा है]
4. AAA 44
并计# # 并并并针 # 并行
महाशुक्र
" | १०वें में
सहस्रार
आनत
| गा० ३४९-५० में इन दोनों कल्पों
संख्या आदि नहीं कही गई है।।
प्रारणत
१६ । १५ - १४ ... १३ ... १२ | ११ ,
স্বাহা अच्युत
११, | ६वें में