________________
गाथा : ३४६-३५१ ] अट्ठमो महाहियारो
{ ५२७ लंतब-इंवय-वक्षिण-विसाए वोसाए' सेठीबद्ध सु।
बारसम - सेढिबद्ध', चे?वि हु तविको वि ।।३४६।।
प्रर्ष-(पहलेसे चवालीसवें ) लान्तव नामक इन्द्रकको दक्षिण दिशामें बोस श्रेणीबद्धोंमेंसे बारहवें श्रेणीबद्ध विमानमें लान्तव इन्द्र स्थित है ।।३४६।।
महसुषिकदय-उत्तर-विसाए अट्ठरस - सेढिबद्ध ।
दसमम्मि सेढिबद्ध, वसइ महासुक्क - णामिदो ॥३४७।।
प्रयं-(पहलेसे पैंतालीसवें ) महाशुक्र नामक इन्द्रकको उत्तर दिशा में अठारह श्रेणीबद्धों मेंसे दसवें श्रेणीबद्ध विमानमें महाशुक्र नामक इन्द्र निवास करता है ।। ३४७।।
होवि साहस्सारत्तर - विसाए सत्तरस - सेढिबद्ध सु।
भट्ठमए सेहिम, वसइ सहस्सार - णामिदो ॥३४८।।
अर्थ-(पहले से संतालीसवें ) सहस्रार नामक इन्द्रककी उत्तर दिशामें सत्तरह श्रेणीबद्धों मेंसे पाठवें श्रेणीबद्ध विमानमें सन्सार नामक इन्द्र निवास करता है ।।३४८।।
जिणविट्र-णाम-वय-दक्षिण-पोलीए सेढिबसु ।
छट्ठम - सेढीबद्ध, आरपद - णामित्र - आवासो ॥३४॥
मर्थ-जिनेन्द्र द्वारा देखे गये नामवाले इन्द्रककी दक्षिण-पक्तिके श्रेणीबद्धों से छठे श्रेणीमद्धमें पानत नामक इन्द्रका निवास है ॥३४६।।
तस्सिवयस्स उत्तर - दिसाए तस्संख - सेटिबद्ध हैं।
छट्ठम - सेढीबई, पाणन - णामिद - प्रावासो ॥३५०॥
मर्य-इस इन्द्रककी उत्तर दिशामें उतनी ही संख्या प्रमाण श्रेणीबद्धोंमेंसे छठे श्रेणीबद्ध में प्राणत नामक इन्द्रका निवास है ।।३५०।।।
प्रारण-इंदय-दक्षिण-बिसाए एक्फरस-सेटिबद्ध सु ।
छठम - सेढीबद्ध, प्रारण - इंदस्स आवासो ॥३५॥ अर्थ-पारण इन्द्रककी दक्षिण दिशाके ग्यारह श्रेणीबद्धोंमेंसे छठे श्रेणीबद्ध विमानमें आरण इन्द्रका आवास है ॥३५१।।
१. मीस के स्थान पर १६. श्रेणीबद्धोंमेंसे होना चाहिए।