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________________ ५२६ ] तिलोय पण्णत्ती तस्सिदयस्स उत्तर बिसाए बत्तीस अट्ठारसमे चेट्ठदि, इंदो ईसाण Fara नामक इन्द्र स्थित है ( चित्र इसप्रकार है ) - · अर्थ – इसी इन्द्रककी उत्तर दिशा के बत्तीस श्र ेणीबद्धोंमेंसे अठारहवें श्रीबद्ध विमानमें - ||३४२ ॥ शान ऐडयन इन्द्र का - - अबा ਸਮੇਂ इन्द्रक - दिये में मिलाए पढमा प्रतीसे, वषिण-पंतीए चक्क णामस्स । पणुवीस सेढिबद्ध, सोलसमे तह सणक्कुमारियो ।। ३४३ || वास सोलहवें श्रीबद्ध विमानमें सानत्कुमार इन्द्र स्थित है ||३४३ || A अर्थ- पहले से अड़तीसवें चक्र नामक इन्द्रकको दक्षिण पंक्ति में पच्चीस श्र ेणीबद्धों में से सेडिबद्ध सु णामो य ।। ३४२ ॥ तस्सिवयस्स उत्तर विसाए पणुवीस-सेहिबद्धम्मि । सोलसम सेढिबद्ध, चेटू दि माहिव णामिवो ॥ ३४४॥ [ गाथा : ३४२-३४५ · अर्थ - इस इन्द्ररूको उत्तरदिशा में पच्चीस श्रं गीबद्धोंमेंसे सोलहवें श्रेणीबद्ध में माहेन्द्र नामक इन्द्र स्थित है ।। ३४४ || · बहुत्तरस्स दक्षिण-विसाए इगियोस सेढिबद्ध सु । चोसम सेढिबद्ध, चेटुवि हु बम्ह कप्पिदो || ३४५ ।। - - ( पहले से बियालीसवें ) ब्रह्मोत्तर नामक इन्द्रक की दक्षिण दिशा में इक्कीस श्रेणी बों से चौदहवें श्रेणीबद्ध विमान में ब्रह्म कल्पका इन्द्र स्थित है ||३४५ ।।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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