SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 589
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ [ ५२१ गाथा : ३२५-३३० ] अट्ठमो महाहियारो इन्द्रों में तनुरक्षक ओर पारिषद देवोंको देवियाँसम्वेसु इंवेसु, तणरक्ख - सुराण होंति देवीप्रो । पुह छस्सयमेत्ताणि, णिरुदम - लावण्ण - रूवाप्रो ॥३२५।। अर्थ-सब इन्द्रों में तनुरक्षकदेवोंको अनुपम लावण्यरूपवाली देवियां पृथक्-पृथक् छह सौ (६०० ) प्रमाण होती हैं ।। ३२५॥ आदिम-दो-जुगलेसु, बम्हारिसु चउसु.प्राणद-चउपके। पुह - पुह सविदाणं, अन्भंतर - परिस - देवीओ ॥३२६॥ पंच-सय-चउ-सयाणि,ति-सया दोन्सयाणि एक्क-सयं । पण्णासं पणुवोसं, कमेण एवाण णादया ॥३२७॥ ५०० । ४०० । ३०० । २०० । १०० । ५० । २५ । ___ अर्थ आदिके दो युगल, ब्रह्मादिक चार युगल और आनतादिक चारमें सब इन्द्रोंके अभ्यन्तर पारिषद-देवियाँ क्रमश: पृथक-पृथक् पाँच सौ, घार सौ, तीन सौ, दो सौ, एक सौ, पचास और पच्चीस जाननी चाहिए ॥३२६-३२७।। छप्पंच-चउ-सयाणि, तिग-दुग-एक्क-सयाणि पण्णासा। पुज्योविद - ठाणेसु, मज्झिम - परिसाए देवीमो ॥३२॥ ६०० । ५०० । ४०० । ३०० । २०० । १०० । ५० । अर्थ-पूर्वोक्त स्थानों में मध्यम पारिषद देवियां क्रमशः छह सौ, पाच सौ, चार सौ, तीन सौ, दो सौ, एक सौ और पचास हैं ।।३२८॥ . सत्त-छ-पंच-घउ-तिय-दुग-एक्क-सयाणि पुन्व-ठाणेसु। सब्धिदारणं होंति हु, बाहिर • परिसाए देवीप्रो ॥३२६॥ ७०० । ६०० । ५०० । ४०० । ३०० । २०० । १०० । अर्प-पूर्वोक्त स्थानों में सब इन्द्रोंके बाह्य-पारिषद देवियां क्रमशः सात सौ, छह सौ, पांच सो, चार सौ, तीन सौ, दो सौ और एक सौ हैं ।।३२६।। अनीक देवोंकी देवियोसत्ताणीय - पहणं, पुह पुह देवीओ छमिया होति । दोणि सया पत्तेषक, देवोनो अणीय - देवाणं ॥३३०॥ ६०० । २००।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy