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________________ ५२० ] तिलोयपात्ती [ गाथा : ३२०-३२४ प्रतीन्द्रादिक तीन को देवियोपडियादितियस्स य, णिय-णिय देहि सरिस-देवीमो। संखाए पामेहि, विक्किरिया • रिद्धि सारि ॥३२०॥ अर्थ-प्रतीन्द्रादिक तीन ( प्रतीन्द्र, सामानिक और बायस्त्रिंश ) को देवियां संख्या, नाम, विक्रिया और ऋद्धि, इन चार ( बातों) में अपने-अपने इन्द्र ( को देवियों ) के सदृश हैं ।।३२०।। लोकपालोंकी देवियाआविम-वो-जगलेसु, बम्हादिसु चउसु प्राणव-च उक्के । दिग्गिव - जेट्ठ - देवीओ होंति चत्तारि चत्तारि ।।३२१॥ अर्थ-आदिके दो युगल, ब्रह्मादिक चार युगल और आनत आदि चारमें लोकपालोंकी ज्येष्ठ देवियां चार-चार होती हैं ।।३२: तप्परिवारा कमसो, चउ-एक-सहस्सयाणि पंच-सया। अड्ढाइज्ज - सयाणि, तद्दल - तेसट्टि - बत्तीसं ॥३२२॥ ४००० । १००० ३५०० । २५० । १२५ । ६३ । ३२ । अर्थ-उनके परिवारका प्रमाण क्रमश: चार हजार, एक हजार, पांच सौ, अढ़ाई सौ, इसका प्राधा अर्थात् एक सौ पच्चीस, तिरेसठ और बत्तीस है ॥३२२॥ णिरुषम-लावण्णामो, बर-विविह-विभूसणाप्रो पत्तक्क । प्राउट्ट - कोरिमेता, बल्लहिया लोयपालाणं ॥३२३॥ ३५००००००1 अर्थ-प्रत्येक लोकपालके अनुपम लावण्यसे युक्त और विविध भूषणोंवाली ऐसी साढ़े तीन करोड़ { ३५०००००० ) वल्लभाएं होती हैं ।।३२३।। लोकपालोंमेंसे प्रत्येकके सामानिक देवोंकी देवियांसामारिणय-देवीप्रो, सध्ध - विगिवाण होति पत्तेक्कं । णिय-णिय-विगिद-देवी, समाण - संखामो सव्वाश्रो ॥३२४॥ अर्थ—सब लोकपालोंमेंसे प्रत्येकके सामानिक देवोंकी सब देवियां अपने-अपने लोकपालोंकी देवियोंके सदृश संख्यावाली हैं ।।३२४।। १.द.ब. क. ज.क.पडिइंयातिषियस्स य ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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