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________________ ५२२ ] तिलोय पण्णत्ती [ गाया : ३३१-३३२ अर्थ -सात प्रतीकों के प्रभुओंके पृथक्-पृथक् छह सौ ( ६०० ) और प्रत्येक प्रतीकदेव के दो सौ ( २०० ) देवियाँ होती हैं ||३३० || जाम्रो पइणयाणं, श्रभियोग-सुराण किविभसारखं च । देवीओ ताण संखा, उवएसो संपद पणट्टी ॥ ३३१ ॥ अर्थ - प्रकीर्णक, आभियोग्य देव और किल्विषक देवोंकी जो देवियाँ हैं उनकी संख्याका उपदेवा इससमय नष्ट हो गया है ||३३१|| तरक्ख-प्पहूदीणं, पुह पुह एक्केषक जेदु देवीश्रो एatest बल्लहिया, विविहालंकार - कंतिल्ला ||३३२ ॥ धर्म-तनुरक्षक आदि देवोंके पृथक्-पृथक् विविध प्रलङ्कारोंसे शोभायमान एक-एक ज्येष्ठ देवी और एक-एक वक्लभा होती है ||३३२॥ - [ तालिका अगले पृष्ठ पर देखिए ]
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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