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गाथा : २९५-३०३ ] अट्ठमो महाहियारो
[ ५१५ तेस पहाण-विमाणा, सयपहारिट्ट - जलपहा णामा ।
वरणपहो य कमसो, सोमाविय - लोयपालाणं ॥२६॥ अर्थ-उन विमानोंमें सोमादि लोकपालोंके क्रमश: स्वयंप्रभ, अरिष्ट, जलप्रभ और बल्गुप्रभ नामक प्रधान विमान हैं ।।२९८।।
इय-सखा-णामाणि, सणकुमारिद • बम्ह - इंदेखें। सोमादि । दिगिदाणं, भणिदाणि वर - विमाणेसु ॥२६॥
अर्थ-सनत्कुमार और ब्रह्मन्द्र के सोमादि लोकपालोंके उत्तम विमानोंको भी यही (६६६६६६) संख्या और ये ही नाम कहे गये हैं ।।२६६।।
होदि हु सयंपहरखं, परजेनुस - अंजणागि वग्ग य ।
ताण पहाण - विमाणा, सेसेसु दक्खिणिदेसु ॥३०॥
अर्थ-शेष दक्षिण इन्द्रों में स्वयम्प्रभ, घरज्येष्ठ, अजन और बल्गु, ये जन लोकपालोंके प्रधान बिमान होते हैं ।।३००।।
सोमं सत्यवभद्दा, सुभट्ट-प्रमिवाणि' सोम-पहुदीणं ।
होति पहाण - विमाणा, सम्वेस् उत्तरिदाणं ॥३०१॥ अर्थ-सब उत्तरेन्द्रोंके सोमादिक लोकपालोंके सोम ( सम ), सर्वतोभद्र, सुभद्र और अमित नामक प्रधान विमान होते हैं ॥३०॥
ताणं विमाण-संखा-उवएसो णस्थि काल - दोसेण ।
ते सव्वे वि विगिदा, तेसु विमाणेसु कोडते ॥३०२॥
अर्थउन विमानोंकी संख्याका उपदेश कालवश इससमय नहीं है । ये सब लोकपाल उन विमानोंमें क्रीड़ा किया करते हैं ।।३०२॥
सोम-जमा सम-रिबी, दोषिण वि ते होंति दक्विणि देस।
तेसु अहियो वरुणो, वरुणादो होदि धणणाहो ॥३०३॥ प्रर्थ-दक्षिणेन्द्रोंके सोम और यम ये दोनों लोकपाल समान ऋद्धिवाले होते हैं । उनसे अधिक ( ऋद्धि-सम्पन्न ) वरुण और वरुणसे अधिक ( ऋद्धि सम्पन्न ) कुबेर होता है ॥३०३।।
१. द. ब, क, ज. 3. समिदारिण।