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तिलोयपण्णत्ती
1 गाथा । ३०४-३०९ सोम-जमा सम-रिद्धी, बोणि वि ते होंति उत्तरदाणं ।
तेस कुवेरो अहियो, हवेदि वरुणो कुबेरादो ॥३०४॥
पर्थ-उत्तरेन्द्रों के वे दोनों सोम और यम समान ऋद्विधाले होते हैं। उनसे अधिक ऋद्धि सम्पन्न कुबेर और कुबेरसे अधिक ऋद्धि सम्पन्न वरुण होता है ।।३०४।।
इन्द्रादिकी ज्येष्ठ एवं परिवार देवियाइंच - पडियावीणं, देवाणं जेसियानो देवोनो।
चेटुति तेत्तियानो', घोच्छामो आणुपुटवीए ॥३०॥ अर्थ--इन्द्र और प्रतीन्द्रादिक देवोंके जितनी-जितनी देवियों होती हैं उनको अनुक्रमसे कहते हैं ।।३०५॥
एक्केक्क - दक्खिणिदे, अदुटु • हवंति जेट्ठ-देवोनो। पउमा-सिवा-सचीओ, अंजुकया - रोहिणी - नवमी ॥३०६।। बल-णामा अच्चिणिया, ताओ सचिव-सरिस-सामानो। एक्केषक - उत्तरिय, तम्मेत्ता जेट - देवीग्रो ॥३०७।। किण्हा य मेघराई, रामावइ-रामरविखवा वसका।
वसुमित्ता वसुधम्मा, धसुघरा सम्ब-इंद-सम-णामा ॥३०॥
प्रथं-पधा, शिवा, शची, अञ्जुका, रोहिणी, नवमी, बलनामा और अचिनिका ये आठ ज्येष्ठ देवियां प्रत्येक दक्षिण इन्द्रके होती हैं । वे सब इन्द्रोंके सदृश नामवाली होती हैं। एक-एक उत्तर इन्द्र के भी इतनी ( आठ ) ही ज्येष्ठ देवियां होती हैं । ( उनके नाम ) कृष्णा, मेघराजी, रामापति, रामरक्षिता, वसुका, वसुमित्रा, वसुधर्मा और वसुन्धरा हैं । ये सब इन्द्रोंके, समान नामवाली होती हैं ( अर्थात् सब इन्द्रों की देवियों के नाम यही है।) ॥३०६-३०८।।
सक्क-दुगम्मि सहस्सा, सोलस एक्केषक-जेट्ट-देवीग्रो । चेट्ठति चारु - णिरुवम - रूवा परिवार - देवीभो ॥३०॥
१६०००। प्रयं-सौधर्म और ईशान इन्द्रको एक-एक ज्येष्ठ देवीके सुन्दर एवं निरुपम रूपवाली सोलह हजार ( १६००० ) परिवार-देवियां होती हैं ।।३०।।
१. द. ब. क. ज.ठ. तेत्तियाणं।
२. द. म. वा. ज.ठ, स्वारणं ।