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________________ गाथा : २८८-२९१ ] अट्ठमो महाहियारो [ ५११ पंच-च-तिय-दुगारण, सयाणि 'बॉम्हदयादिय-चउक्के । प्राणद' - पहुदि - चउक्के, पत्तेक्कं एक्क-एक्क-सयं ॥२८॥ ५०० । ४०० 1 ३०० । २०० । १०० । अर्थ-ब्रह्मन्द्रादिक चारके सामन्त देव क्रमशः पाच सो, चार सौ, तीन सौ, दो सौ तथा आनतादिक चार इन्द्रोंमेंसे प्रत्येकके एक-एक सौ होते हैं ।।२८८।। दक्षिणेन्द्रोंके लोकपालोंके पारिषद देवोंका प्रमाणपण्णास चउ-सयाणि, पंच-सयभंतरादि-परिसायो। सोम जमाणं भरिणदा, पत्तेक्कं सयल-दपिणि देसु॥२६॥ ५० । ४०० । ५००। प्रयं-समस्त दक्षिणेन्द्रों में प्रत्येकके सोम एवं यम लोकपालके अभ्यन्तर पारिषद देव पचास (५०), मध्यम पारिषद देव चारसौ ( ४०० ) और बाह्य पारिषद देव पांच सौ ( ५०० ) कहे गये हैं ।।२८९॥ सट्ठी पंच-सयाणि, छच्च सया ताओ तिग्णि-परिसायो । वरुणस्स कुवेरस्स य, सत्तरिया छस्सयाणि सत्त-सया ॥२६॥ ६० । ५०० । ६०० । ७० । ६०० । ७०७ मर्थ-वे तीनों पारिषद देव वरुणके साठ (६०), पांच सौ ( ५०० ) और छह सौ (६०० ) तथा कुबेरके सत्तर (७०), छह सौ ( ६०० ) और सात सौ (७०० ) होते हैं ।।२९०।। उत्तरेन्द्रोंके लोकपालोंके पारिषद देवोंका प्रमाण-- जा दक्षिण-इंदाणं, कुबेर-घरुणस्स उत्थ तिप्परिसा । फादव विवज्जासं, उत्तर - इंदाण सेस पुरुष वा ॥२६॥ ५० । ४०० | ५०० ।। वरु ७० । ६०० । ७०० ।। कुबे ६० । ५०० । ६०० अर्थ-उन दक्षिणेन्द्रोंके कुबेर और वरुणके तीनों पारिषदोंका जो प्रमाण कहा है उससे उत्तरेन्द्रों ( के कुबेर और वरुणके पारिषद देवोंके प्रमाण ) का क्रम विपरीत है । शेष पूर्व के समान समझना चाहिए ।।२६१॥ - - - - - १.द, ब.क.ज..म्हित्यादिम । २. द. ., ज,ठ, आरण।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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