________________
५१० ]
तिलोय पण्णत्ती
वर-कंचण- कयसोहा, वर-पत्रमा सुर विकुब्वण-बलेणं ।
एक्केषक - महापउमे, पाउप
महापद्मपर एक-एक नाटयशाला होती है ।।२८३॥
-
अर्थ – देवोंके विक्रिया - बलसे वे उत्तम पद्म उत्तम स्वर्णसे शोभायमान होते हैं। एक-एक
-
[ गाथा : २८३ - २८७
साला य एक्क्का ॥ २८३॥
एक्heere तीए, बत्तीस
वरच्छरा पणच्चति । एवं सत्ताणीया, णिद्दिट्ठा बारसिवाणं ॥ २६४ ॥
अर्थ--- उस एक-एक नाट्यशाला में उत्तम बत्तीस अप्सरायें नृत्य करती हैं। इसप्रकार बारह इन्द्रोंकी सात अनीकें ( सेनाएं ) कही गयी हैं ।। २६४ ||
इन्द्रके परिवार देवोंके परिवार देवोंका प्रमाण
पुह-पुह इण्णयाणं, अभियोग सुराण किव्विसाणं च ।
संखातीय पमाणं भणिदं सध्येतु इंदाणं ॥ २८५ ॥
अर्थ- सभी (स्वर्गी) में इन्द्रोंके प्रकीर्णक, आभियोग्य और किल्विषिक देवोंका पृथक्-पृथक् असंख्यात प्रमाण कहा गया है ।। २६५ ।।
पडिइंदाणं' सामाणियाण तेत्तीस बस भेदा परिवारा, जिय इंद
-
सुर-वराणं च
समाण पत्तेक्कं ॥ २६६ ॥
अर्थ - प्रतीन्द्र, सामानिक और त्रास्त्रिश देवोंमेंसे प्रत्येकके दस प्रकारके परिवार अपने इन्द्रके सदृश होते हैं ।। २८६ ॥
लोकपालोंके सामन्त देवोंका प्रमाण
चत्तारि सहस्सा णि, सक्कादि दुगे दिगिव सामंता । एक्कं चेत्र सहस्सं, सणक्कुमारादि वोहं पि ॥ २८७॥
४००० १००० !
अर्थ- सौधर्म और ईशान इन्द्रके लोकपालोंके चार हजार सामन्त ( ४०००) श्रीर सनत्कुमारादि दो के सामन्त देव एक-एक हजार ही होते हैं ॥ २८७ ॥
१. प्रतीन्द्र, सामानिक और त्रास्त्रिश देवोंके दस-दस भेद कैसे सम्भव हो सकते हैं ?