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________________ गाधा ! २७७-२८२ ] अट्ठमो महाहियारो [ ५०९ अर्थ-दोनों ( दक्षिणेन्द्र और उत्तरेन्द्र ) की पीठानीक ( प्रश्वसेना) का अधिपति हरि नामक देव होता है । शेष अनीकोंके अधिपतियोंके नामोंका उपदेश नहीं है ।।२७६।। अभियोगारणं अहिवइ - देवो चेदि दक्षिणिदेसु। बालक - रणामो उत्तर - इंदसु पुष्फदंतो य ॥२७७।। अर्य-दक्षिणेन्द्रों में अभियोग वेवोंका अधिपति बालक नामक देव और उत्तरेन्द्रों में इनका अधिपति पुष्पदन्त नामक देव होता है ॥२७७।।। बाहन देवगत ऐरावत हाथीका विवेचनसबक-दुगम्मि य वाहण-देवा एरावद-णाम हत्थीणं । कुब्बति विकिरियाओ, लक्खं उच्छेह जोयणा बोहं ॥२७॥ अर्थ-सौधर्म और ईशान इन्द्रके वाहन देव विक्रियासे एक लाख ( १०००००) उत्सेध योजन प्रमाण दीर्घ ऐरावत नामक हाथीकी रचना करते हैं ।।२७।। एमाण पत्तोस, होशि मुहमा पिण्य-स्यम-दान-जुदा । पुह पुह रुणंत किकिणि-कोलाहल सह-कपसोहा ॥२७६।। प्रर्थ–इनके दिष्य रत्न-मालाओंसे युक्त बत्तीस मुख होते हैं, जो पण्टिकामोंके कोलाहल शब्दसे शोभायमान होते हुए पृथक्-पृथक् शब्द करते हैं ।।२७९।। एषकेक्क - मुहे चंचल-चंदुज्जल-चमर-चार-स्वम्मि । चत्तारि होति बंता, धवला घर-रयम-भर-खषिवा ।।२८०॥ प्रथ-चञ्चल एवं चन्द्रके सदृश उज्ज्वल चामरोंसे सुन्दर रूपवाले एक-एक मुखमें ररनोंके समूहसे खचित धवल चार-चार दात होते हैं ।।२८०।। एक्क म्मि विसाणे, एक्केवक-सरोवरे विमल-बारी । एक्केवक - सरवरम्मि य, एक्केक्कं कमल-घर-संडा ॥२८॥ अर्ष-एक-एक विषाण ( हाथी दांत ) पर निर्मल जलसे युक्त एक-एक सरोबर होता है। एक-एक सरोवर में एक-एक उत्तम कमल-खण्ड ( कमल उत्पन्न होनेका क्षेत्र ) होता है ।।२८।। एक्केषक-कमल-संडे, बत्तीस-विकस्सरा महापउमा। एकेक - महापउने, एक्केक्क - जोयग • पमाण ॥२२॥ प्रर्य-एक-एक कमल-खण्डमें विकसित बत्तीस महापन होते हैं और एक-एक महापम एक-एक योजन प्रमाण होता है ।।२८।।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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