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________________ गाथा : २६५-२७० ] अमो महाहियारो ! ५०७ अर्थ - पंचम कक्षा के नर्तक देव लोकपालों सहित समस्त इन्द्रोंके सुन्दर चरित्रोंका विचित्र भंगिमाओंसे अभिनय करते हैं ।। २६४ || गणहर-वेबावीणं, विमल मुणिवाण विविह रिद्धीणं । चरियाई' विचित्ताई, णच्चते छट्ट - कक्खाए || २६५ ॥ अर्थ - छठी कक्षा नर्तकदेव विविध ऋद्धियोंके धारक गणधर आदि निर्मल मुनीन्द्रोंके श्रद्भुत चरित्रोंका अभिनय करते हैं ।। २६५।। - चोत्तीसाइ सयाणं, बहुविह कहलाण पाडिराणं । जिण पाहाण चरित्तं, सत्तम फक्खाए णच्चति ॥ २६६ ॥ अर्थ- -सप्तम कक्षा के नतंक देव चोंतीस अतिशयोंसे युक्त और बहुत प्रकारके मंगलमय प्रातिहायोंसे संयुक्त जिननाथोंके चरित्रका अभिनय करते हैं || २६६ || दिव्व वर- बेह- जुत्ता, वर-रयण-विभूसणेहि कयसोहा । ते गच्चं णिच्छं, णिय जिय इंवाण श्रम ।। २६७ ॥ ॥ -दिव्य एवं उत्तम देह सहित और उत्तम रत्न - विभूषणों से शोभायमान वे नर्तक देव free ही अपने-अपने इन्द्रोंके आगे नाचते हैं ॥ २६७ ॥ सत्तपवाणाणीया, एवे इंदाण होंति पत्तेक्कं । अण्णा वि छत्त चामर, पोढाणिय बहुबिहा होति ॥ २६८ ॥ अर्थ - इस प्रकार प्रत्येक इन्द्रके सात-सात कक्षाओं वाली सेनाएँ होती हैं । इसके अतिरिक्त अन्य भी बहुत प्रकार छत्र, चंवर और पीठ ( सिंहासन ) होते हैं ||२६८ ॥ वाणि अणीयाणि, बसहाणीयस्स होंति सरिसाणि । बर विविह भूसणेह, विभूसिबंगाणि पत्तेमकं ॥ २६६ ॥ - - सब प्रतीकों मेंसे प्रत्येक उत्तम विविध भूषणोंसे विभूषित शरीरवाले होते हुए वृषभानीकके सदृश हैं ।। २६९॥ सव्वाणि श्ररणीयाणि, कक्खं पडि छस्स सहावेणं । पुण्यं व विकुवरणए, लोयविणिच्छय मुणी भइ ॥ २७० ॥ ६०० । ४२०० | पाठान्तरम् । १. द. ब. उच्चरिय । २. द. द. फ. ज ठ मुणि भणई ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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