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माथा : २५३-२५८ ] अट्टमो महाहियारो
[ ५०५ भिण्णिदणील-यण्णा, सत्तम-कक्ख-द्विता वसह-पहुदी ।
ते णिय-रिणय-कक्खासु, वर - मंडण - मंखिदायारा ॥२५३॥
अर्थ-अपनी-अपनी कक्षाओं मेंसे सप्तम कक्षामें स्थित वृषभादिक भिन्न इन्द्रनीलमणिके सदृश वर्ण वाले और उत्तम प्राभूषणोंसे मण्डित प्राकारसे युक्त होते हैं ।।२५३।।
प्रत्येक कक्षाके अन्तराल में बजने वाले धादित्रसत्ताण' अणीयाणं, णिय-णिय-कक्खाण होंति विच्चाले।
घर-पाह - संख - मद्दल - काहल - पहुवीण पत्तेक्कं ॥२५४॥
मर्थ–सातों अनीकोंकी अपनी-अपनी कक्षामोंके अन्तरालमें उत्तम पटह, शङ्ख, मर्दल और काल प्रादिमेंसे प्रत्येक होते हैं ।।२५४।।
वृषमादि सनाषीको शोभाका वर्णनसंबंत-रयण-किकिणि-सुहदा-मणि-कुसुम-दाम-रमणिज्जा । घुवंत - षय - बडाया, बर - चामर - छत्त-कतिल्ला ॥२५॥ रयणमया पल्लाणा, वसह - तुरंगा रहा य इंदाणं ।
बहुविह - विगुब्बणाणं, वाहिग्जंताण सुर - कुमारेहिं ।।२५६।। प्रर्ष-बहुविध विक्रिया करने वाले तथा सुर-कुमारों द्वारा उह्यमान इन्द्रोंके वृषभ, तुरंग और रथादिक लटकती हुई रत्नमय क्षुद्र-घण्टिकानों, मणियों एवं पुष्पोंकी मालाओंसे रमणीय ; फहरातो हुई ध्वमा-पताकाओंसे युक्त, उत्तम चंवर एवं छत्रसे कान्तिमान् और रत्नमय तथा सुखप्रद साजसे संयुक्त होते हैं ।।२५५-२५६ ।।
असि-मुसल-कणय-तोमर-कोदंड-पहुवि-विविह-सत्थकरा ।
ते सत्तसु कक्खासु, पदातिणो दिव्य • रूवधरा ॥२५७।।
मर्थ-जो असि, मूसल, कनक, तोमर और धनुष प्रादि विविध शस्त्रोंको हाथमें धारण करने वाले हैं, वे सात कक्षाओंमें दिव्य रूपके धारक पदाति होते हैं ॥२५७।।
सज्ज रिसहं गंधार - मन्झिमा पंच-पंच-महर-सरं । घइवर - जुवं णिसावं, पुह पुह गायति गंधवा ॥२५८।।
१. द. क. ज. ठ. सत्ताण य आणीया। २. ब. क. चं सद्विसहं, ६.ब. 3. सं अद्विसहं ।