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________________ ५०० ] तिलावती अनीक देवोंका प्रमाण -- बसह तुरंगम-रह- गज-पदाति- गंधव्व णट्टयाणीश्रा । एवं सत्ताणीया, एक्केवक हवंति इंदाणं ॥ २३५॥ | गाथा । २२५-२३९ अर्थ- वृषभ, तुरङ्ग, रथ, गज, पदाति, गन्धर्व और नर्तक अनीक, इसप्रकार एक-एक इन्द्रकी सात सेनायें होती हैं ।। २३५ ।। एदे सत्तारणीया पत्तेक्कं सत-सत्त-कक्ख-जुदा । तेसु पढमाणीया, यि णिय सामाणियाण' समा ॥ २३६ ॥ · अर्थ-इन सात सेनाओंमेंसे प्रत्येक सात-सात कक्षाओंसे युक्त होती हैं। इनमेंसे प्रथम अनीकका प्रमाण अपने-अपने सामानिकों के बराबर होता है ।। २३६ ॥ - तत्तो वगुणं गुणं, कादव्वं जाव सत्तमाणीयं । परिमाण जाणण ताणं संखं परुवेमो ॥ २३७॥ > अर्थ - इसके भागे सप्तम अनीक पर्यन्त उससे दूना दूना करना चाहिए। इस प्रमाणको जानने के लिए उनकी संख्या कहते हैं ||२३७ ॥ इगि- कोडी छलक्खा, श्रद्वासट्ठी - सहस्सया बसहा । सोहम्मदे होंति हु, तुरयावी तेलिया वि पत्तेषकं ॥ २३८ ॥ १०६६८००० | पिंड ७४६७६००० | अर्थ – सौधर्म इन्द्रके एक करोड़ छह लाख भड़सठ हजार ( १०६६५००० ) वृषभ होते हैं और तुरगादिकसे प्रत्येक भी इतने प्रमाण हो होते हैं ||२३८|| विशेषार्थ - सौधर्म इन्द्रकी प्रथम कक्षमें वृषम संख्या सामानिक देवोंके सदृश ८४००० प्रमाण है । इस प्रथम कक्षकी संख्या सातों कक्षाओंकी संख्या १२७ गुणी होती है अतः प्रथम श्रनीक की सातों कक्षाओं में कुल संख्या ( ८४०००×१२७ ) = १०६६५००० है । प्रथम अनीककी संरूपा १०६६८००० है अतः सातों अनीकोंकी पिण्ड रूप संख्या ( १०६६८०००४७ ) - ७४६७६००० है । इसीप्रकार सर्वत्र जानना चाहिए । एक्का कोडी एवर्क, लक्खं सट्टो सहस्स बसहाणि । ईसाणिवे होंति हु, तुरयादी तेत्तिया वि पत्तेक्कं ॥ २३६ ॥ १०१६०००० | पिंड ७ ११२०००० । १. द. क. ज. ठ. सामाजियाणि समता व सामारियाणि सम्मत्ता । २. ब. तुरयादिय ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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