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तिलोयपणती
[ गाथा ! २१६-२२१ जुवराय - कलसाणं, पुत्तारणं तह य तंतरायाणं । वपु-रक्खा • कोषाणं, बर-मज्झिम-अधर-तइल्लाणं ॥२१॥ सेणाण पुरजणाणं, परिचाराणं तहेब पाणाणं ।
कमसो ते सारिच्छा, 'परिइंद - प्पडविणो होति ॥२१७॥
अर्थ-वे प्रतीन्द्र प्रादि क्रमशः युवराज, कलत्र, पुत्र सथा तन्त्रराय, कृपाणधारी धरीय रक्षक, उत्तम, मध्यम एवं जधन्य परिषदें बैठने योग्य ( सभासद ), सेना, पुरजन, परिचारक और चाण्डालके सदृश होते हैं ।२१६-२१७।।
प्रतीन्द्रएक्केक्का पडिइंचा, एस्केक्काणं हवंति इंशाणं ।
से जुवराय - रिधोए, वड्डते आउ - परियंतं ।।२१।। प्रयं-एक-एक इन्द्रकै जो एक-एक प्रतीन्द्र होते हैं के आयु पर्यन्त युवराजकी ऋद्धिसे युक्त रहते हैं ॥२१॥
सामानिक देवोंका प्रमाणचउसीवि-सहस्सारिण, सोहम्मिवस्स होति सुर-पवरा । सामाणिया सहस्सा, सीवी ईसाण - इंदस्स ॥२१॥
___८४००० । ८०००० । प्रर्ष-सामानिक जातिके उत्कृष्ट देव सौधर्म इन्द्रके चौरासी हजार ( ८४००० ) और ईशान इन्द्र के अस्सी हजार ( ८०००० ) होते हैं ।।२१९॥
बाहत्तरी - सहस्सा, ते चेते सणकुमारिने । सचरि - सहस्स - मेता, तहेव माहिंद - इंवस्स ॥२२०।।
___७२००० १७००००। अर्थ- सामानिक देव सनत्कुमार इन्द्रके बहत्तर हजार ( ७२००० ) और माहेन्द्र इन्द्रके सत्तर हजार ( ७०००० ) प्रमाण होते हैं ॥२२०॥
बम्हिवम्मि सहस्सा, सट्ठी पण्णास लंतर्विदम्मि । चालं महसुक्किदे, तीस सहस्सार • ईवम्मि ॥२२१॥
६००००। ५००००। ४००००1३००००।
1.ब. परिइंव ।