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गाथा : २२२ - २२५ ]
म महाहियारो
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अर्थ – सामानिकदेव ब्रह्मन्द्रके साठ हजार ( ६००००), लान्तवेन्द्र के पचास हजार ( ५०००० ), महाशुक्र इन्द्रके चालीस हजार ( ४०००० ) और सहस्रार इन्द्रके तीस हजार ( ३०००० ) होते हैं ||२२१॥
प्राणद- पाणद-इ दे, वीसं श्रीस सहस्साणि पुढं,
२०००० | २००००
२०००० | २०००० ।
अर्थ – सामानिकदेव झानत प्रारणत इन्द्रके बीस हजार ( २०००० ) और आरण - अच्युत इन्द्र पृथक्-पृथक् बीस हजार (२००००) होते हैं ।। २२२ ।।
वायस्त्रिश और लोकपाल देव-
सामाणिया सहस्सा रिंग । पत्तेषकं प्रारणच्युविसु ॥ २२२ ॥
तेसीस सुरपवरा, एक्केक्काणं हवंति तारि लोयपाला, सोम-जमा वरुण
लोकपाल होते हैं ||२२३॥
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अर्थ - एक-एक इन्द्रके संतीस वायस्त्रिश देव और सोम, यम, वरुण तथा धनद, ये चार
१. द. व. क. ज ठ साग ।
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तनुरक्षक देव
तिणियि लक्खाणि छत्तीस सहस्तयारि तरक्ला ।
सोहम विदिए, 'ताणि सोलस सहस्त हीणाणि ।। २२४ । ।
३३६००० । ३२०००० ।
अर्थ--तनुरक्षक देव सौधर्म इन्द्रके तीन लाख छत्तीस हजार ( ३३६००० ) और द्वितीय इन्द्र के इनसे सोलह हजार कम ( ३२०००० ) होते हैं ||२२४||
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इवाणं ।
धणदा य ॥२२३॥
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अट्ठासोदि - सहस्सा, दो लक्खाणि सरणक्कुमारिदे ।
माहिंदिदे लक्खा, दोण्णि य सीदी सहस्साणि ॥ २२५ ॥
२६६००० | २८०००० |
अर्थ-तनुरक्षक देव सनत्कुमार इन्द्रके दो लाख अठासी हजार ( २८८००० ) और
माहेन्द्र इन्द्रके दो लाख अस्सी हजार ( २८०००० ) होते हैं ।। २२५ ||
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