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________________ गाथा : २२२ - २२५ ] म महाहियारो [ ४६७ अर्थ – सामानिकदेव ब्रह्मन्द्रके साठ हजार ( ६००००), लान्तवेन्द्र के पचास हजार ( ५०००० ), महाशुक्र इन्द्रके चालीस हजार ( ४०००० ) और सहस्रार इन्द्रके तीस हजार ( ३०००० ) होते हैं ||२२१॥ प्राणद- पाणद-इ दे, वीसं श्रीस सहस्साणि पुढं, २०००० | २०००० २०००० | २०००० । अर्थ – सामानिकदेव झानत प्रारणत इन्द्रके बीस हजार ( २०००० ) और आरण - अच्युत इन्द्र पृथक्-पृथक् बीस हजार (२००००) होते हैं ।। २२२ ।। वायस्त्रिश और लोकपाल देव- सामाणिया सहस्सा रिंग । पत्तेषकं प्रारणच्युविसु ॥ २२२ ॥ तेसीस सुरपवरा, एक्केक्काणं हवंति तारि लोयपाला, सोम-जमा वरुण लोकपाल होते हैं ||२२३॥ 4 अर्थ - एक-एक इन्द्रके संतीस वायस्त्रिश देव और सोम, यम, वरुण तथा धनद, ये चार १. द. व. क. ज ठ साग । - तनुरक्षक देव तिणियि लक्खाणि छत्तीस सहस्तयारि तरक्ला । सोहम विदिए, 'ताणि सोलस सहस्त हीणाणि ।। २२४ । । ३३६००० । ३२०००० । अर्थ--तनुरक्षक देव सौधर्म इन्द्रके तीन लाख छत्तीस हजार ( ३३६००० ) और द्वितीय इन्द्र के इनसे सोलह हजार कम ( ३२०००० ) होते हैं ||२२४|| · इवाणं । धणदा य ॥२२३॥ - अट्ठासोदि - सहस्सा, दो लक्खाणि सरणक्कुमारिदे । माहिंदिदे लक्खा, दोण्णि य सीदी सहस्साणि ॥ २२५ ॥ २६६००० | २८०००० | अर्थ-तनुरक्षक देव सनत्कुमार इन्द्रके दो लाख अठासी हजार ( २८८००० ) और माहेन्द्र इन्द्रके दो लाख अस्सी हजार ( २८०००० ) होते हैं ।। २२५ || -
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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