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तिलोयपपपत्ती
[ गाथा : २०५-२०१ अर्थ-ब्रह्म और लान्तव नामक कल्पोंमें कृष्ण एवं नोलसे रहित तीन वर्णवाले तथा महाशुक्र और सहस्रारकल्पमें रक्त वर्णसे भी रहित शेष दो वर्ण वाले विमान हैं ।।२०४॥
प्राणद-पाणद-प्रारण अच्चुद-गेवेज्जयादिय-विमाणा ।
ते सव्वे मुत्ताहल - मयंक - कुदुजला होति ।।२०५।। अर्थ-आनत, प्राणत, आरण, अच्युत और अवेयकादिके वे सब विमान मुक्ताफल, मृगांक अथवा कुन्द पुष्प सदृश उज्ज्वल हैं ।।२०५।।
विशेषार्थ-सौधर्मशान कल्पोंके विमान पांच वर्णवाले हैं । सनत्कुमार-माहेन्द्र कल्पोंके विमान कृष्ण बिना शेष चार वर्ण वाले हैं । ब्रह्म और लान्तक कल्पोंके विमान कृष्ण एवं नील बिना तीन वर्ण वाले हैं । महाशुक्र और सहस्रार कल्पोंके विमान कृष्ण, नील एवं रक्त वर्णसे रहित दो वर्णवाले हैं और प्रानतादिसे लेकर अनुत्तर पर्यन्त के सभी विमान कृष्ण, नील, लाल एवं पीत वर्णसे रहित मात्र शुक्ल वर्णके होते हैं।
विमानोंके आधारका कथनसोहम्म-दुग-विमाणा, घणस्स-रूवस्स उवरि सलिलस्स।
चेट्टते पक्षणोवरि, माहिब - सरणक्कुमाराणि ॥२०६।।
अयं-सौधर्म युगल के विमान घनस्वरूप जलके ऊपर तथा माहेन्द्र एवं सनत्कुमार कल्पके विमान पवनके ऊपर स्थित हैं ।।२०६॥
बम्हावी चत्तारो, कप्पा चेट्ठति सलिल - वाढूढं।
माणद - पाणद - पहुवी, सेसा सुद्धम्मि गयरणयले ॥२०७।। पर्ष-ब्रह्मादिक चार कल्पोंके विमान जल एवं वायु दोनोंके ऊपर तथा मानत-प्राणतादि शेष विमान शुद्ध आकाशतलमें स्थित हैं ।।२०७||
इन्द्रकादि विमानोंके ऊपर स्थित प्रासादउरिम्मि इंवयारणं, सेढिगयाणं पइण्णयाणं च ।
समचउरस्सा दोहा, ते विविह - पासावा ॥२०॥
वर्ष-इन्द्रक, श्रेणीबद्ध और प्रकीर्णक विमानोंके ऊपर समचतुष्कोण एवं दीपं विविध प्रासाद स्थित हैं ॥२०॥
कणयमया फलिहमया, मरगय-माणिक्क-इंदणीलमया । विन्दुममया विचित्ता, बर - तोरण - सुवर-दुवारा ॥२०६।।