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तिलोयपणत्ती
[ गाथा : २०२ प्रर्थ-विमानतल-बाहल्य प्रानतादि चार कल्पोंमें पांच सौ सत्ताईस (५२७ ) और अधस्तन अवेयकमें चार सौ अट्ठाईस ( ४२८ ) योजन है 1॥२०१॥
उणतीसं लिग्णि-सया, मझिमए तीस-पहिय-कु-सयाणि । उपरिमए एक्क - सयं, इगितीस अणुद्दिसादि - युगे ॥२०२।।
__३२९ । २३० । १३१ । अर्थ-विमानतल बाहल्य मध्यम वेयकमें तीन सौ उनतीस ( ३२९), उपरिम वेयकमें दो सौ तीस ( २३० ) और अनुदिशादि दो ( अनुदिश और अनुत्तर ) में एक सौ इकतीस ( १३१) योजन है ।।२०२॥
उपयुक्त विमानोंका प्रमाण और तल-मागके बाहल्य प्रमाण की सालिका इसप्रकार है
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