SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 559
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गापा । १९७-२०१] अट्ठमो महाहियारो [ ४६१ अर्थ असंख्यात योजन विस्तारवाले विमान अधस्तन, मध्यम और उपरिम थेयकमें क्रमशः एक सौ पाठ, नवासी और चौहत्तर हैं !!११६। प्रद अदिस-गामे, बहु-रयणमयाणि वर-विमाणाणि । चत्वारि अणुत्तरए, होंति, असंखेज्ज • विस्थारा ॥१९॥ ८।४। प्रयं-असंख्यात विस्तारवाले बहुत रत्नमय उत्तम विमान अनुदिश नामक पटलमें आठ और अनुत्तरोंमें चार हैं ।।१६७।। ___ विमान तलोंके बाहल्यका प्रमाणएक्करस-सया इगिवीस-उत्तरा जोयणाणि पत्तेक्कं । सोहम्मीसाणेसु', बिमाण - तल - बहल - परिमाणं ॥१९॥ प्रयं-सौधर्म और ईशानकल्पमेंसे प्रत्येकमें विमानतलके बाहल्यका प्रमाण ग्यारह सौ इक्कीस ( ११२१ } योजन है ।।१९८।। बावोस - जुद • सहस्स', माहिब-सगक्कुमार-कप्पेसु। तेवीस - उत्तराणि, सयाणि णव बम्ह - कप्पम्मि ॥१६॥ १०२२ । ६२३ । अर्थ-विमानतल-बाहल्यका प्रमाण सनत्कुमार-माहेन्द्रकल्पमें एक हजार बाईस (१०२२) मौर ब्रह्मा कल्पमें नौ सौ तेईस ( ९२३ ) योजन है ।।१९९।। चवीस-जुवट्ठ-सया, लतवए पंचवीस सत्त - सया। महसुक्के छब्बीसं, छच्च - समाणि सहस्सारे ॥२०॥ ८२४ । ७२५ । ६२६ । अर्थ-विमानतल बाहल्य लान्तव कल्पमें आठ सौ चौबीस ( ५२४ ), महाशुक्रमें सात सौ पच्चीस ( ७२५ ) और सहस्रारमें छह सौ छब्बीस ( ६२६ ) योजन है ।।२००!! आणद-पहुदि- चउक्के, पंच-सया सत्तबोस-अम्भहिया। अडवीस चउ - सयाणि, हेडिम - गेवेज्जए होंति ॥२.१॥ ५२७ । ४२८ । १६. क. ज. सहस्सा। २. द. 4. क.अ. . पक्कं ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy