________________
तिलोयपण्णती
[ गाथा : १९२-१९६ असंख्यात योजन विस्तारवाले विमानोंका प्रमाणपणुवीसं लक्खाणि, सादु-सहस्साणि सो प्रसंखेज्जो । सोहम्मे ईसाणे, लक्खा बावीस चालय - सहस्सा ॥१९२।।
२५६०००० । २२४०००० । अर्थ-असंख्यात योजन विस्तारवाले के विमान सौधर्म कल्पमें पच्चीस लाख साठ हजार ( २५६०००० ) और ईशान कल्पमें बाईस लाख चालीस हजार ( २२४०००० ) हैं ।। १९२॥
सट्ठि-सहस्स-जुवाणि, पब-लक्खाणि मणक्कुमारम्मि । चालीस - सहस्साणि, माहिदे छुच्च लक्खाणि ॥१९३॥
७.०० । ६४०००० ! पर्ष-असंख्यात योजन विस्तार वाले वे विमान सनत्कुमार कल्पमें नौ लाख साठ हजार ( ९६०००० ) और माहेन्द्रकल्पमें छह लाख चालीस हजार ( ६४०००० ) हैं ।।१९३॥
वीस-सहस्सति-लक्खा, चाल-सहस्साणि बम्ह-संतवए। बत्तीस - सहस्साणि, महसुक्के' सो प्रसंखेज्जो ॥१४॥
३२०००० । ४०००० । ३२००० । प्रर्ष-वे असंख्यात योजन विस्तारवाले विमान ब्रह्म कल्पमें तीन लाख बीस हजार ( ३२०००.), लान्तव कल्पमें चालीस हजार (४००००) और महाशुक्रमें बत्तीस हजार (३२०००) हैं ।।१९४॥
चत्तारि सहस्साणि, अट्ठ-सयाणि तहा सहस्सारे । प्राणव-पहुवि-चउक्के, पंच - सया सहि - संजुमा ।।१६५॥
४८०० । ५६० । प्रयं-वे विमान सहस्रार कल्पमें चार हजार अाठ सौ (४८०० ) तथा आनतादि चार कल्पोंमें पांच सौ साठ ( ५६० ) हैं ॥१९॥
अठ्ठत्तरमेक्क-सयं, उणणउदी सत्तरी य चउ-अहिया। हेट्ठिम • मझिम - उवरिम - गेवेज्जेसु असंखेज्जो ॥१६॥
१०८ । ८९ । ७४।
१.ब. क. महसुक्कै सु सो असंखेजा।