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गाथा : १८८-१९१ ] अट्ठमो महाहियारो
[ ४८९ पर्य-सौधर्म कल्पमें संख्यात योजन विस्तार वाले विमान छह लाख चालीस हजार (६४०००० ) और ईशान कल्पमें चालीस हजार कम छह लाख ( ५६०००० ) हैं ॥१७॥
चालीस-सहस्साणि, दो-लक्खागि सगवकुमारम्मि । सट्टि - सहस्सम्भहियं, माहिवे एकक - लक्खाणि ॥१८॥
मर्ष सानत्कुमार कल्पमें संख्यात योजन विस्तारवाले विमान दो लाख चालीस हजार ( २४०००० ) हैं और माहेन्द्रकल्पमें एक लाख साठ हजार ( १६०००० विमान ) हैं ॥१८॥
बम्हे' सीदि-सहस्सा, लंतव-कप्पम्मि बस-सहस्साणि । अटु सहस्सा बारस - सयाणि महसुक्कए सहस्सारे ॥१६॥
८०००० । १०००० । ८००० । १२००। प्रपं-ब्रह्म कल्पमें संख्यात योजन विस्तारवाले विमान अस्सी हजार (८००००), लान्तव कल्पमें दस हजार ( १००००), महाशुक्रमें आठ हजार ( ८०००) और सहस्रार कल्पमें बारह सौ (१२०० ) है ।।१८।।
प्राणव-पाणव-पारण-प्रच्चव-गामेसु चउसु कप्पेसु। संखेज्ज - द - संखा, चालग्भहियं सयं होवि ॥१६॥
१४० । मर्ष-पानत, प्राणत, आरण और अच्युत नामक चार कल्पोंमें संख्यात योजन विस्तार वाले विमानोंकी संख्या एक सौ चालीस { १४० ) है ॥१९॥
तिय-अट्ठारस-सत्तरस-एक्क-एक्काणि तस्स परिमाणं । हेटिम-मज्झिम-उपरिम-गेवेज्जेसु प्रणविसावि-जगे ॥१९१॥
३1१८ । १७ । १ । १ ! प्रयं-अधस्तन, मध्यम और उपरिम संवेयक तथा अनुदिशादि युगलमें संख्यात पोजन विस्तार वाले विमानोंका प्रमाण क्रमशः तीन, पठारह, सत्तरह एक पोर एक है ॥१९॥
१. ६. ज, 6. बम्हो ।