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________________ ४८८ ] तिलोयपत्तो [ गाथा : १८३-१८७ अर्थ-शुक्र कल्पमें बीस अधिक बीस हजार ( २००२०) और महाशुक्र कल्पमें बीस कम बीस हजार ( १९९८० ) विमान हैं ॥१८२।। उणबीस-उत्तराणि, तिग्णि-सहस्साणि सदर-कप्पम्मि । कप्पम्मि सहस्सारे, उणतीस - सयारिण इगिसीबी ॥१३॥ ३०१९ । २९८१। अर्थ-शतार कल्पमें तीन हजार उन्नीस ( ३०१६ ) और सहस्रार कल्पमें दो हजार नौ सौ इक्यासी ( २९८१ ) विमान हैं ॥१८३।। आण-पाणद-कप्पे, पंच-सया सटि-विरहिवा होति । आरण-अमचुद-कप्पे, कु - सयाणि सहि - जुत्ताणि ॥१४॥ ४४० । २६० अर्थ-आनत-प्राणत कल्पमें साठ कम पांच सौ { ४४० ) और आरण-अच्युत करूपमें दो सौ साठ ( २६० ) विमान हैं ।।१८४॥ अहवा प्राणव-जुगले, चत्तारि सयाणि वर-विमाणाणि । प्रारण - अमचुद - कप्पे, सयाणि तिणि य हवंति ॥१५॥ पाठान्तरम् । ४०० । ३००। प्रर्ष-अथवा, आनत युगलमें चार सौ ( ४०० ) और पारण-अच्युत कल्पमें तीन सौ ( ३०० ) उत्तम विमान हैं ।।१८।। ___ संख्यात योजन विस्तारवाले विमानोंकी संख्या--- कप्पेसु संखेज्जो, विक्खंभो रासि-पंचम-विभागो। णिय-णिय-संखेज्जुणा, णिय-गिय-रासो असंखेज्जो ॥१८६॥ अर्थ-कल्पोंमें राशिके पाचर्षे भाग प्रमारए विमान संख्यात योजन विस्तारवाले हैं और अपने-अपने संख्यात योजन विस्तारवाले विमानोंकी राशिसे कम अपनी-अपनी राशि प्रमाण असंख्यात योजन विस्तारवाले हैं ।।१८६।। संखेज्जो विक्खंभो, चालीस-सहस्सयाणि छल्लक्खा । सोहम्मे ईसाणे, चाल - सहस्सूण - छल्लक्खा ॥१७॥ ६४०००० | ५६००००।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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