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.. [ ५७ ] विषय गाथा/पृ० सं० | विषय
गाथा/पृ.सं. सूर्य के बाह्य पथ में स्थित होने पर इछित
द्वितीय पथ में तमक्षेत्र
३९१५३४९ परिधि में पक्षेत्र निकालने की विधि ३४६३३४ तृतीय पथ में तमक्षेत्र
३९२।३८६ सूर्य के मेस आदि की परिषियों में तापक्षेष
मध्यमपथ में तमक्षेत्र
३१३१३५० का प्रमाण
बा हाथ में तमक्षेत्र
३६४१३५० सूर्य के बाह्य पथ में स्थित होने पर
लवणोदधि के छठे भाग में तमक्षेत्र प्रथम पथ में तापक्षेत्र ३५६ ३३७ शेष परिदियों में तमक्षेत्र
३६६४३५१ सूर्य के द्वितीय वीथी में तापक्षेत्र ३५७१३३:१
सूयं के :. होरे पर जगह: सूर्य के मध्यम पथ में तापक्षेत्र ३५८।३३७
का प्रमाण
२६४३५१ सूर्य के बाह्यपथ में तापक्षेत्र
३५६।३३८
सूर्य के बाह्य पथ में विवक्षिप्त परिधिमें सूर्य के लवणसमुद्र के खठे भागमें तापक्षेव३६०५३३८
तमक्षेत्र प्राप्त करने की विधि ३६/३५१ सूर्य की किरणशक्तियों का परिचय ३६॥३३८ दोनों सूर्यो का तापक्षेत्र
३६२१३३९
सूर्य के माह्य पथ में मेरु आदि की परिधियों
में तमक्षेत्रका प्रमाण सूर्य के प्रथम पप में स्थित रहते रात्रि का प्रमाण
३६३।३३६
सूर्य के बाह्य पथ में स्थित रहते प्रथम वीथी
में तम-क्षेत्र का प्रमाण सूर्य के प्रथम प्रक्छित परिधि में तिमिर
४५६।३५४ क्षेत्र प्राप्त करने की विधि
द्वितीय वीथी में तमक्षेत्र का प्रमाण ४.६।३५४
तृतीय वीथी में तमक्षेत्र का प्रमाण सर्य के प्रथम मेकपाटि परिधियों में
४१०३.५४ सिमिर क्षेत्र
३६५४३४० चतुर्थ वीथी में तमक्षेत्र
४११०३५४ सूर्य के प्रथम पम्पन्तर वीथी में तमक्षेत्र ३७४१३४२ मध्यम पथ में समक्षेत्रका प्रमाण ४१२।३५५ द्वितीय पथ में तमक्षेत्र
सूर्य के बाह्य पथ में स्थित रहते बाह्य पथ में तृतीय पथ में तमक्षेत्र
३७६।३४३ तमक्षेत्र
४१३१३५५ मध्यम पथ में तमक्षेत्र
सषणोदधि के छठे भाग में तमक्षेत्र का बाह्य पथ में तमक्षेत्र
३७८/३४३
प्रमाण लषण समुद्र के छठे भाग में तमक्षेत्र ३७९।३४४
दोनों सर्यो के तिमिर क्षेत्र का प्रमाण ४१५॥३५६ सूर्य के द्वितीय पथ में स्थित रहते इच्छित
तिमिर क्षेत्र को हानि वृद्धि का क्रम ४५६।३५६ परिधि में तिमिरक्षेत्र प्राप्त करने की
भातप और तिमिर क्षेत्रों का क्षेत्रफल ४१४॥३५.६ विधि
३८०३४६ दोनों सूर्य सम्बन्धी प्रातप एवं सम का सूर्य के मेरु मादि की परिधियों में
क्षेत्रफल
४२१४३५७ तमक्षेत्र का प्रमाण
३८१३३४६ ऊध्वं प्रौर अध। स्थानों में सूरी के अभ्यम्तर पथ में समक्षेत्र ३९०११४९ भातप क्षेत्र का प्रमाण
४२२/३५८