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________________ म महाहियारो प्रकीर्णक विमानोंका अवस्थान और उनकी पृथक्-पृथक् संख्या सेठीणं विच्चाले पण कुसुमावमा" - संठाणा । होंति पइण्णय खामा, सेढिवय- हीण- रासि समा ॥ १६८ ॥ गाथा : १६६ - १७२ ] - अर्थ - श्रीबद्ध विमानों के बीचमें बिखरे हुए कुसुमोंके सदृश आकारवाले प्रकीर्णक नामक बिमान होते हैं । इनकी संख्या श्रेणीबद्ध और इन्द्रकोंसे होन अपनी-अपनी राशिके समान है ।। १६८ ।। इगिती लक्खाणि, पणणउदि सहस्स पण सम्राणि पि । अट्ठारणउदि जुवाणि पइण्णया होंति सोहम्मे ॥ १६६ ॥ ३१९५५६८ । अर्थ —– सौधर्मकल्प में इकतीस लाख पंचानबे हजार पाँच सौ अट्ठानबे ( ३१९५५६८ ) प्रकीर्णक विमान हैं ॥१६६॥ सत्तावीस लक्खा, श्रणउवि - सहस्स परण-सयाणि पि । तेदाल उत्तराई पइण्णया होंति ईसा ॥ १७० ॥ विमान हैं ।। १७२ ।। [ ४८३ २७६६५४३ । अर्थ – ईशानकल्पमें सत्ताईस लाख श्रद्वानबे हजार पाँच सौ तेतालीस ( २७९६५४३ ) प्रकीर्णक विमान हैं ॥ १७० ॥ एक्कारस- लक्खाणि, णषणउदि सहस्त थउ-सा रिंगपि । पंचतराइ कप्पे, सणक्कुमारे पइण्णया होंति ।। १७१ ॥ ११९९४०५ । अर्थ —– सानत्कुमार कृरूपमें ग्यारह लाख निन्यानबे हजार चार सौ पाँच ( ११९९४०५ ) प्रकीर्णक विमान हैं ॥ १७१ ॥ सच्चिय लक्खाणि, णवणउदि सहस्त अडसयाणं पि । चउरुत्तराइ कप्पे, पण्णया होंति माहिये ।।१७२ ।। ७९९६०४ । पर्थ - माहेन्द्रकल्प में सात लाख निन्यानबे हजार आठ सौ चार ( ७९९६०४ ) प्रकीर्णक १. व. ब. क. ज. 3. कंसुडवमाण । २. द. ज. ठ. पंचुतर ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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