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________________ ४८२ ] तिलोय पण्णत्ती [ गाथा : १६५-१६७ श्रयं - छठे ( लान्तव ) कल्प में एक सी छप्पन सीबद्ध और दो इन्द्रक हैं तथा महाशुक्रकल्प में बहत्तर श्र ेणीबद्ध और एक इन्द्रक है ।। १६४।। लान्तवकल्पमें श्र ेणीबद्ध [ ( ८०x२+४) – ( २x४ ) ] x १ - १५६ हैं । महाशुक्रकल्प में श्रणीबद्ध = [ ( ७२×२ + ४ ) - ( १४४ ) ] × ३ = ७२ हैं । सट्ठी सेढिगया, एक्को चिचम इंदयं सहस्सारे । चवीसुतर तिसया छ-डंदया श्राणवादिय- उषके ।। १६५ ।। ६८ । १ । ३२४ । ६ । अर्थ - सहस्रार में अड़सठ श्र ेणीबद्ध और एक इन्द्रक है तथा आनतादिक चार में तीन सो चौबीस श्रेणीबद्ध और छह इन्द्रक हैं ।। १६५।। सह० कल्प में श्रीबद्ध - [ ( ६८x२+४ ) – ( १ × ४ ) ] × ३ = ६८ हैं । श्रानतादि चार श्र ेणीबद्ध - [ { ६४×२+४ ) – ( ६x४ ) ] × ई-३२४ हैं । हेट्टिम - मज्झिम-उबरिम - गेवेज्जाणं च सेढिगय-संखा । अट्टम्भहि एक सयं, कमसो बाहत्तरीय छत्तीसं ॥१६६॥ १०६ । ७२ । ३६ । अर्थ-अधस्तन, मध्यम और उपरिम ग्रैवेयकोंके श्र णीबद्ध विमानोंकी संख्या क्रमश: एक सौ आठ, बहत्तर और छत्तीस है ।। १६६ ॥ अधस्तन ग्रं० के श्र ेणीबद्ध [ ( ४०x२+४) – {३x४) ]×३= १०८ हैं । मध्यम ग्रं० के श्रणीबद्ध - [ ( २६x२ + ४ ) - ( ३x४ ) ] x ३ = ७२ हैं । उपरिम ० के श्रीबद्ध = [ ( १६४२+४ ) – ( ३×४ ) ] ×३=३६ हैं । ताणं गेवेज्जाणं, पत्तेक्कं तिष्णि इंवया चउरो । सेटिगवाण अणुद्दिस अणुत्तरे इदया हु एक्केषका ॥ १६७॥ · -- उन ग्रैवेयकों में से प्रत्येक में तीन इन्द्रक विमान हैं। अनुदिश और अनुत्तरमें चार ( चार ) श्र ेणीबद्ध और एक-एक इन्द्रक विमान हैं ।। १६७ ।। अनुदिशों में श्र ेणीबद्ध - [ ( ४x२+४) – (१×४ ) ] × ३=४ हैं ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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