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________________ ४८ ] तिलोयपण्णत्ती [ गाथा : १६० दक्षिणेन्द्र अपेक्षा ३ से और उत्तरेन्द्र अपेक्षा एकसे गुणा करनेपर तथा अहाँ दक्षिणेन्द्र-उत्सरेन्द्रको कल्पना नहीं है वहाँ चारसे गुणा करनेपर गाथा १५५-१५७ में कहे हुए आदिधन ( मुख) का प्रमाण प्राप्त होता है। यही ३, १ और ४ उत्तरधन है। इन्हींको हानिचय भी कहते हैं ( गाथा १५८ ), क्योंकि प्रत्येक पटलमें उपयुक्त क्रमसे ही श्रेणीबद्ध घटते हैं। गा० १५५ - १५७ में कहे हुए मादिधन ( मुख ) का प्रमाण सौधर्मकल्पमें ( ६२४३- ) १८६, ईशानकल्पमें (६२४१-) ६२, सानत्कुमारमें ( ३१४३- ) ९३, माहेन्द्र में ( ३१४१-- ) ३१, ब्रह्मकल्पमें ( २४४४.) ९६, लान्तव कल्पमें (२०४४-) ८०, महाशुक्रमें ( १८४४- ) ७२. सह. में ( १७४४% ) ६८, पानतादि चारमें (१६x४- ) ६४. अधोवे० में ! १०५४= } ४० मध्यम पैदे में ( ७४४= ) २८, उपरिम अवेयक में ( ४४४= ) १६ और नव अनुदिशोंमें (१४४-) ४ आदिधनों (मुखों ) का प्रमाण है। गाथा १५९ में कहे हुए गच्छका प्रमाण अपने-अपने पटल (३१,७,४, २, १, १,६॥ ३, ३ पोर १.) प्रमाण होता है । इसप्रकार मादिधन (हानिषय ), उत्तरधन और गच्छका ज्ञान हो जानेपर दक्षिणेन्द्र और उत्तरेन्द्र के श्रेणीबद्धोंका सर्व-संकलित धन प्राप्त करनेकी विधि मताते हैं। संकलित धन प्राप्त करनेकी विधिगच्छं चएण गुणिवं, दुगुणिव-मुह-भलिख चय-विहीणं । गच्छद्ध गप्प - हवे, संकलिवं एत्य गादब्वं ॥१६०॥ . . मर्य-दुगुणित मुखमें चय जोड़कर उसमेंसे चय गुणित गच्छ घटा देनेपर जो शेष रहे उसे गच्छके अर्धभागसे गुणित करने पर जो लब्ध प्राप्त हो यह यहाँ संकलित धन जानना चाहिए ।।१६०॥ विशेषार्थ-दक्षिणेन्द्र और उत्तरेन्द्रके श्रेणीबद्धोंका सर्व संकलिस धन प्राप्त करनेके लिए गाथा सूत्र इसप्रकार है प्रत्येक कल्पके श्रेणीबद्ध= [ ( मुख x २ + चय) - ( गच्छ x चय)] ४गच्छ सभी कल्पाकल्पोंके अपने-अपने श्रेणीबद्ध विमान इसी सूत्रानुसार प्राप्त होंगे।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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