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________________ गाथा । १५८- १५९ ] अमो महाहियारो सोहम्माविच उनके तिय-एकक-तिथेक्कयाणि रिणप-चो । शु चढ ग वाणि : - स्थानों में गच्छ रखना चाहिए ।। १५९ ।। - ३ । १ । ३ । १ । ४ । ४ । ४ । ४ । ४ । ४ । ४ । ४ । श्रथं सौधर्मादिक चार कल्पोंमें तीन, एक, तीन और एक हानि चय है। शेष कल्पों में चार-चार रूप जानना चाहिए ।। १५८६ ।। इगितीस सत्त-च- दुग एवकेवक्र-छ-ति-ति-तिय-एक्के का । ताणं कमेण गच्छा, बारस — णावदा ।। १५६ ।। - [ ४७९ ३१ । ७ । ४ । २ । १ । १ । ६।३।३।३।१ । १ । अर्थ - इकतीस, सात, चार, दो, एक, एक, छह तीन, तीन, तीन, एक और एक, इन बारह + ठाणेसु ठविवठवा ॥ १५६ ॥ विशेषार्थ - उपर्युक्त गाथा १५६ में जो गच्छ संख्या दर्शाई गई है वही प्रत्येक युगलके पटलोंकी अर्थात् इन्द्रक विमानोंकी संख्या है । यथा - सौधर्म युगल में ३१ इन्द्रक, सानत्कुमार युगलमें ७, ब्रह्म रूप में ४, लान्तव कल्पमें २, महाशुक कल्प में १, सहसार कल्पमें १, आनतादि चार कल्पोंमें ६. अघस्तन तीन ग्रैवेयकोंमें ३, मध्यम तीन ग्रैवेयकोंमें ३, उपरिम तीन ग्रैवेयकों में ३, नो अनुदिशों में १ तथा पाँच अनुत्तरोंमें १ इन्द्रक विमान हैं । अपने-अपने युगलके गच्छका भी यही प्रमाण है । सोमं कल्में एक दिशा सम्बन्धी थेणीबद्धोंका प्रमाण ६२ है, इनमें से स्व-गच्छ (३१) घटा देनेपर (६२ ३१ ) = ३१ शेष रहे । यही सानत्कुमार युगलके प्रथम पटल में एक दिशा सम्बन्धी श्रेणीबद्धोंका प्रमाण है । इसीप्रकार पूर्व-पूर्व युगल के प्रथम पटलके एक दिशा सम्बन्धी श्रीबद्धों के प्रमाणमेंसे अपने-अपने पटल प्रमाण गच्छ घटानेगर उतरोत्तर कल्पोंके प्रथम पटलके एक दिशा सम्बन्धी श्र ेणीबद्धों का प्रमाण प्राप्त होता है । यथा - सीधर्मेशान में ६२, सानत्कुमार माहेन्द्र में ( ६२ - ३१ ) : ३१, ब्रह्मकरूप में ( ३१ - ७ ) = २४, लान्तव कल्पमें ( २४ - ४ ) ०२०. महाशुक्रमें (२० - २ ) = १८, सहस्रारमें (१८ - -१) - १७, आनसादि चार कल्पोंमें ( १७ - १ ) १६, अघोग्रैवेयक में ( १६ - ६ ) - १०, मध्यम मैवेयक में ( १० ३) ७, उपरिम ग्रैवेयकमें ( ७ - ३ ) - ४ और अनुदिशों में (४ - ३ ) - १ श्रेणीबद्ध विमान एक दिशा सम्बन्धी है । " पूर्व पश्चिम और दक्षिण, इन तीन दिशाओंमें स्थित श्रेणीबद्ध दक्षिणेन्द्रके और उत्तर दिशा स्थित श्रेणीबद्ध उत्तरेन्द्रके प्राधीन होते हैं अतः उपर्युक्त श्रेणीबद्ध विमानोंके प्रमाणको
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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