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४७८ ]
तिलोयपणती
[ गापा । १५५-१५७
क्रमांक
स्वर्गों के नाम
विमानों की संख्या
क्रमांक
स्वर्गों के नाम
विमानों का संस्था
सौधर्म कल्प
३२०००००
मानत, प्राणत ।
०
२८००००० "
आरण, अच्युत अधस्तन ग्रेवे.
१२००००० "
ऐशान , सानत्कुमार, माहेन्द्र । ब्रह्म ,
A
०
मध्यम
१०७
४०००००
लान्तव,
५०००० हजार
उपरिम , अनुदिश अनुत्तर
महाशुक्र ।
४००००
सहस्रार ,
६००० ॥
योग = ८४६७०२३
सौधर्माधि कल्प स्थित श्रेणीबद्ध विमानों की संख्या प्राप्त करने हेतु मुख
एवं गच्छका प्रमाणछासीवी-अधिय-सय, बासट्टी सस-विरहिदेवक-सयं । इगितीसं छपउवी, सौदी बाहत्तरी य अडसट्ठी ॥१५॥ घउसट्ठी चालीस, अडवोसं सोलसं च चउ चउरो। सोहम्मादी - अद्वसु, प्राणद - पहुदोसु च उसु कमा ॥१५॥ हेडिम-मझिम-उवरिमगेवेग्जेसु प्रणहिसावि-दुगे ।
सेढीवर - पमाण - प्पयास - णटुं इमे पभवा ॥१५७।। १८६ । ६२ । ९३ । ३१ । १६ । १० । ७२ । ६८ । ६४ । ४० । २८ । १६ । ४ । ४ ।
पर्थ-सौधर्मादिक पाठ, पानत आदि चार तथा अधस्तन, मध्यम एवं उपरिम वेयक और अनुदिशादिक दो में श्रेणीबद्धोंका प्रमाण लानेके लिए क्रमश: एक सौ छियासी, बासठ, सात कम एक सौ (९३), इकतीस, छपानबै, अस्सी, बहत्तर, अड़सठ, चौंसठ, चालीस, अट्ठाईस, सोलह, चार और चार, यह प्रभव ( मुख) का प्रमाण है ॥१५५-१५७।।