SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 545
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गाथा : १५१ - १५४ j महादिया [ ४७७ - इन्द्रकादिक तीनों प्रकार के विमान ब्रह्म कल्पमें चार लाख ( ४००००० ), लान्तवकल्पमें पचास हजार ( ५०००० ) और महाशुक नामक कल्पमें चालीस हजार ( ४०००० ) हैं ।। १५० ।। छस्सेव सहस्वाणि, होंति सहस्सार- कप्प-णामम्मि । सस-सयाणि विमाणा, कप्प- चउक्कम्मिश्रणव- प्प मुहे ।। १५१ ।। ६००० ७०० अर्थ उक्त विमान सहस्रार नामक कल्पमें छह हजार ( ६००० ) और यानंत प्रमुख चार कल्पों में सात सौ ( ७०० ) हैं ।। १५१ ।। - गण - सत्त छण्णव चउ-श्रटु क कमेण इंदयावि-तिए । परिसंखा णादव्या, बावण्णा कप्प - . पडले ॥१५२॥ ६४९६७०० । अर्थ--शून्य शून्य, सात, छह, नौ, चार और आठ इस प्र क्रमसे अर्थात् चौरासी लाख अन हजार सात सौ ( ८४९६७०० ), यह बावन ( ५२ ) कल्प- पटलोंमें इन्द्रादिक तीन प्रकारके विमानों की ( कुल ) संख्या है ।। १५२ ॥ ॥ - एक्कारसुत्तर-सवं, हेडिम- गेवेज्ज-तिज विमाणाणि । मक्किम - गेवेज्ज लिए, सत्तम्भहियं सयं होबि ॥ १५३ ॥ १११ । १०७ । अर्थ - -- प्रधस्तन तीन ग्रैवेयकोंके विमान एक सौ ग्यारह (१११ ) और मध्यम तीन ग्रैवेयकों में एक सौ साल ( १०७ ) विमान हैं ।। १५३ ।। एक्कन्भहिया गडबी, उबरिम- गेवेज्ज-तिय-विभाणाणि । - पंच विमारारिंग, अणुद्दिसागुत्तरेसु कमा ।। १५४ ।। ९१।९।५ । अर्थ-उवरिम तीन ग्रैवेयकों के विमान इक्यानबे ( ११ ) और अनुदिश एवं अनुत्तरोंमें क्रमशः नौ और पांच ही विमान हैं ।। १५४ ।। - विशेषार्थ -- कल्प पटलों में स्थित इन्द्रक, अणीबद्ध और प्रकीर्णक विमानोंकी कुल संख्या ८४९६७०० है । इसमें नव- ग्रंवेयकों के ( १११ + १०७ +९१ ) ३०९ विमान तथा अनुदिनोंके ९ और अनुत्तरोंके ५ विमान और मिला देने पर विमानोंका कुल प्रमाण ८४९७०२३ होता है । जिसकी तालिका इसप्रकार है
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy