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तिलोयपणाती
था: १४७-१५० अर्थ-पानत आदि छह इन्द्रकों और इनकी पूर्व, पश्चिम एवं दक्षिण दिशामें स्थित श्रेणीबद्ध तथा नैऋत्य एवं आग्नेय दिशामें स्थित प्रकीर्णकोंका नाम प्रानत और प्रारण दो कल्परूप है। इन्हीं इन्द्रकोंकी उत्तर दिशामें स्थित श्रेणीबद्ध तथा वायव्य एवं ईशान दिशाके प्रकीर्णकोंका नाम प्राणत और अच्युत कल्प है ।।१४५-१४६।।
हेडिम-हेट्ठिम-पमुहे, एक्केवक सुदंसणामो पडलारिण ।
होंति है एवं कमसो, कप्पातीदा ठिवा सम्वे ।।१४७॥
मर्थ-अधस्तन-अधस्तन प्रादि एक-एकमें सुदर्शनादिक पटल हैं। इसप्रकार क्रमशः सब कल्पातीत स्थित हैं ।।१४७।।
जे सोलस कप्याणि, केई इच्छति ताण उवएसे । अम्हादि • चउ - दुगेसु, सोहम्म-दुर्ग व 'विम्मेदो ॥१४॥
पाठान्तरम् । मर्थ-जो कोई प्राचार्य सोलह कल्प मानते हैं, उनके उपदेशानुसार ब्रह्मादिक चार युगलों में सौधर्म-युगलके सदृश दिशा-भेद है ॥१४८।।
पाठान्तर।
सौधर्मादि कल्पोंमें एवं फरुपातीतोंमें स्थित समस्त विमानोंको संख्याका निर्देश--
बत्तीसट्टाबोस, बारस अटुं कमेग लक्खाणि । सोहम्मावि चउक्के, होंति विमाणाणि विविहारिण ॥१४६॥
३२००००० । २८००००० । १२०००००। ८०००००। मर्म-सौधर्मादि पार कल्पोंमें तीनों प्रकारके विमान क्रमशः बत्तीस लाख (३२०००००), पट्ठाईसलाख (२८०००००), बारह लाख ( १२०००००) और आठ लाख (८०००००) हैं ॥१४६।।
घउ-लक्खाणि बम्हे, पण्णास-सहस्सयाणि लतथए । चालीस - सहस्साणि, कम्पे महसुक्क - णामम्मि ॥१५॥
४००००० । ५००००।४००००।
1.द.ब. वदि मेवो,क... बहि भेदो।