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गाथा : १२५अट्ठमो महाहियारो
[ ४७१ सर्वार्थ सिद्धि इन्द्रकके श्रेणीबद्ध विमानोंके नामविजयंत - वइजयंत, जयंत-अपराजिवं बिमाणाणि ।
सचट्ठ-सिद्धि-णामा, पुवावर-दक्खिणुत्तर-दिसासं ॥१२५॥ अर्थ-सर्वार्थसिद्धि नामक इन्त्रककी पूर्व, पश्चिम, दक्षिण और उत्तर दिशा में विजयन्त, वैजयन्त, जयन्त और अपराजित नामक विमान हैं ।। १२५॥
सबह-सिद्धि-णामे, पुश्वारि-पदाहिणेरण विजयादी। ते होति वर - विमाणा, एवं केई परूवेति ॥१२६॥
पाठान्तरम् । प्रपंसर्वार्थसिद्धि नामक इन्द्रकको पूर्वादि दिशाओंमें प्रदक्षिण रूप वे विजयादिक उत्तम विमान हैं । कोई प्राचार्य इसप्रकार भी प्ररूपण करते हैं ॥१२६॥
पाठान्तर । सोहम्मो ईसाणो, सणयकुमारो सहेव माहियो । बम्हो बम्हुत्तरयं, लंतव-कापिट्ट - सुक्क - महसुक्का ॥१२७॥ सदर-सहस्साराणव-पाणव-पारणय'-अच्चुदा णामा। इय सोलस कप्पाणि, मण्णते केइ आइरिया ॥१२८।।
पाठान्तरम् । एवं गाम-परूवणा समत्ता ॥४॥ अर्थ-सौधर्म, ईशान, सानत्कुमार, माहेन्द्र, ब्रह्म, ब्रह्मोत्तर, लान्तव, कापिष्ट, शुक्र, महा. शुक्र, शतार, सहस्रार, आनत, प्राणल, आरण और अच्युत नामक ये सोलह कल्प हैं। कोई आचार्य ऐसा भी मानते हैं ।।१२७-१२८।।
इसप्रकार नाम प्ररूपणा समाप्त हुई ॥४॥ कल्प एवं कल्पातीत विमानोंकी स्थिति और उनकी सीमाका निर्देश
कणयद्दि-चूल-उरि, किंचूणा-विवड्ढ-रज्जु-बहलम्मि । सोहम्मीसारणक्खं, कप्प - दुगं होदि रमणिज्जं ॥१२६।।
१. द, ब, क. ज. ठ. आरणया । २.६. ब. क. ज. ठ. १४३।