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तिलोयपणती
[ गाथा : १३०-१३५ पर्ष-कनकाद्रि ( मेरु ) पर्वतकी चूलिकाके ऊपर कुछ कम डेढ़ राजूके बाल्यमें रमणीय सौधर्म-ईशान नामक कल्प-युगल है ॥१२६॥
ऊणस्स य परिमाणं, चाल-जुदं जोयणाणि इगि-लक्खं । उत्तरकुरु - मणुवाणं, बालग्गेणादिरित्तमं ।।१३०॥
अर्य-- इस कुछ कमका प्रमाण उत्तरकुरुके मनुष्यों के बालाग्नसे अधिक एक लाख चालीस (१०००४०) योजन है ॥१३०।।
सोहम्मीसाणाणं, चमिदय - केदुदंड - सिहरादो। उड्डू असंख-कोडी-जोयण-विरहिब-दिवड-रज्जूए ॥१३१॥ चिट्ठदि कप्प-जुगलं, णामेहि सणपकुमार-माहिया । तच्चरिमिवय - केदण - बंडाइ असंख - जोयणूणेरणं ।।१३२॥ रए अणं, कप्पो चेट्टीवि तत्थ बम्हक्लो । तम्मेत्ते पत्तेक्क, लंतध - महसुक्कया' सहस्सारो ॥१३३॥ आणव-पाणद-प्रारण-प्रच्छुअ-कप्पा हवंति उवरुवार । तत्तो प्रसंख - जोयण - कोडीमो उवरि अंतरिदा ॥१३४।। कप्पातीदा पड़ला, एक्करसा होंति ऊण - रज्जूए ।
पढमाए अंतरादो, उवरुरि होति अधियानो ॥१३॥
पर्थ-सौधर्म-ईशान सम्बन्धी मन्तिम इन्द्रकके ध्वज-दण्डके शिखरसे ऊपर असंख्यात करोड़ योजनोंसे रहित डढ़ ( १६) राजूमें सनत्कुमार-माहेन्द्र नामक कल्प-युगल स्थित है। इसके अन्तिम इन्द्रक सम्बन्धी ध्वज-दण्डके ऊपर असंख्यात योजनोंसे कम अर्धराजूमें ब्रह्म नामक कल्प स्थित है। इसके आगे इतने मात्र अर्थात् अर्ध-अर्ध राजूमें ऊपर-ऊपर लान्तय, महाशुक्र, सहस्रार, आनत-प्राणत और आरण-अच्युत कल्पोंमेंसे प्रत्येक है । इसके आगे असंख्यात-करोड़ योजनोंके अन्तरसे ऊपर कुछ कम एक राजमें शेष ग्यारह कल्पातीत पटल हैं । इनमें प्रथमके अन्तरसे ऊपर-ऊपरका अन्तर अधिक है ।।१३१-१३५।।
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१. द.म.क.ज.ठ.सुक्कय ।