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________________ गाथा । ११५-११९ ] अट्ठमो महाहियारो [ ४६९ बारस कप्पा केई, केई सोलस ददति पाइरिया। तिविहाणि भासिदाणि, कल्पातीवाणि पडलाणि ॥११५॥ प्र--कोई आचार्य कल्पोंको संख्या बारह और कोई सोलह बतलाते हैं । कल्पातीत पटल तीन प्रकारसे कहे गये हैं ॥११॥ हेट्रिम मज्झे उर्वार, पत्तक्क ताण होति चत्तारि । एवं बारस - कप्पा, सोलस उडडङमट्ट जगलाणि ॥११६॥ अर्थ-जो ( आचार्य ) बारह कल्प स्वीकार करते हैं उनके मतानुसार अधोभाग, मध्यभाग और उपरिम भागमेंसे प्रत्येकमें चार-चार कल्प हैं । इसप्रकार सब बारह कल्प होते हैं । सोलह कल्पोंकी मान्यतानुसार ऊपर-ऊपर आठ युगलोंमें सोलह कल्प हैं ।।११६॥ गेवेन्जमणहिसयं, अणत्तरं इय हवंति तिवियप्पा । कप्पातीवा पडला, गेवेन्जं गव - विहं तेसु॥११७॥ प्रर्य-अवेयक, अनुदिश और अनुसर, इसप्रकार कल्पातीत पटल तीन प्रकारके हैं। इनमेंसे अंवेयक पटल नौ प्रकारके हैं ।।११।। कल्प और कल्पातोत विमानोंका अवस्थानमेरु-सलादो उरि, दिवढ-रज्जए प्राविम जुगलं । तसो हवेदि बिवियं, तेत्तियमेताए रजए ॥११॥ तचो छज्जुगलाणि, पत्तेक्क भद्ध - अद्ध - रज्जूए । एवं कप्पा कमसो, कप्पातीदा य ऊण • रज्जूए ॥११६।। २३1२ 12/22 2|5|| एवं भेद-परूवणा समत्ता ।।३।। मर्य-मेरुतलसे ऊपर डेढ़ राजूमें प्रथम युगल और इसके आगे इतने ही राजू में अर्थात् डेढ़ राजूमें द्वितीय युगल है । इसके आगे छह युगलोंमेंसे प्रत्येक प्रर्ध-अर्ध राजूमें है। इसप्रकार कल्पोंकी स्थिति बतलाई गई है । कल्पातीत विमान ऊन अर्थात् कुछ कम एक राजूमें हैं ॥११८-११९।। इसप्रकार भेद-प्ररूपणा समाप्त हुई ।।३।।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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