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________________ माथा । १००-१०५ ] अट्टम महाहियारो विजयंत वइजयंतं, जयंतमपराजिदं च चतारो । पुष्वादि विमाणाणि, 'ठिवाणि सम्बदुसिद्धिस्स ॥१००॥ - अर्थ - विजयन्त, वैजयन्त, जयन्त और ग्रपराजित, ये चार विमान सर्वार्थसिद्धिको पूर्वादिक दिशाओं में स्थित हैं ।। १०० ।। श्रेणीबद्ध विमानों की प्रवस्थिति उडु-सेढीबद्धद्ध ं, सयंभुरमणंबु - रासि परिधि गवं । सेसा इल्लेसु, तिसु दीवेसु तिसुं समुद्देसु १०१ ॥ २४ । १५ । ६ । ४ । २ । १ । १ । अर्थ - ऋतु इन्द्रकके अर्ध श्र ेणीबद्ध स्वयम्भूरमण समुद्रके प्रणिधि भाग में स्थित हैं। शेष sented विमान आदिके प्रर्थात् स्वयम्भूरमण समुद्र से पूर्व के तीन द्वीप और तीन समुद्रोंपर स्थित हैं ।। १०१ ।। सेठिबद्धाणं । एवं मिचिदंतं, विष्णासो होबि कमसो इल्लेसु तिसु दीवेसु ति जलहीसु ॥ १०२ ॥ 1 · अर्थ- - इसप्रकार मित्र इन्द्रक पर्यन्त श्र ेणीबद्धों का विन्यास क्रमशः आदिके तीन द्वीपों और तीन समुद्रोंके ऊपर है ।। १०२ ।। पभ- पत्थलावि-परदो, जाय सहस्सार- पत्थलंतोति । ब्राइल - तिणि दीवे, दोण्णि-समुम्मि सेसाश्री ॥ १०३ ॥ अर्थ-प्रभ प्रस्तारसे जागे सहस्रार प्रस्तार पर्यन्त शेष, आदिके तीन द्वीपों और दो समुद्रों पर स्थित हैं ।। १०३ ॥ तसो प्राणद-पहूदी, जाव श्रमोघो त्ति सेविद्धाणं । दिल्ल- दोणि दीये, दोणि समुद्दम्मि सेसाओ ॥ १०४ ॥ । [ ४६५ - - इसके आगे बनत पटलसे लेकर अमोघ पटल पर्यन्त शेष श्रेणीबद्धोंका विन्यास प्रादिके दो द्वीपों और दो समुद्रोंके ऊपर है ।। १०४ ।। तह सुप्पबुद्ध - पहूदी, जाव य सुविसालओ सि सेढिगा । आविल्ल एक्क दीवे, दोण्णि समुद्दम्मि सेसाश्री ॥ १०५ ॥ - १. द. व. क. ज. उ. दिवाण । २. द. सेसु ब. क. ज ठ सेसं । "
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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