SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 532
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४६४ ] श्र ेणीबद्ध विमानोंकी क्रम संख्या १ २ ३ ५ ६ ८ ९ पूर्व दिशा में ऋतुप्रभ संस्थितप्रभ श्रीवत्सप्रभ वृत्तप्रभ कुसुमप्रभ चापप्रभ छत्रप्रभ अंजन प्रभ कलशप्रभ वृषभप्रभ तिलोयपण्णत्ती ऋतु इन्द्रक विमान की पश्चिम में दक्षिण में ऋतुमध्यम संस्थितमध्यम श्रीवत्स मध्यम वृतमध्यम कुसुम मध्यम चापमध्यम छत्रमध्यम अंजनमध्यम कलशमध्यम वृषभमध्यम 1 ऋतु श्रावर्त संस्थितावर्त श्रीवत्सावर्त वृत्तावर्त कुसुमावतं चापावर्त छत्रावर्त अंजनावर्त कलशावर्त वृषभावर्त - [ गाथा : ६८-६६ उत्तर में ऋतुविशिष्ट संस्थितविशिष्ट श्रीवत्स विशिष्ट वृत्तविशिष्ट कुसुमविशिष्ट चापविशिष्ट प्रत्येक इन्द्रक सम्बन्धी श्रीबद्ध विमानोंके नाम एवं चउसु बिसासु णामेसु दक्खिणाविय दिसासु । सेद्विगदाणं लामा, पौर्दिकर इदयं जाय ॥६८॥ अर्थ - इसप्रकार दक्षिणादिक चारों दिशाओंों में प्रीतिकर नामक ( ६१ वें ) इन्द्रक पर्यन्त श्रीबद्ध विमानोंके नाम हैं । ९८६ ॥ नोट:- इसी अधिकार की गाथा = द्रष्टव्य है । छत्र विशिष्ट अंजनविशिष्ट कलशविशिष्ट वृषभ विशिष्ट इत्यादि इचच इंदयस्त, पुब्दादिसु लछि लच्छिमालिखिया । बहरा - वहरावणिया, चत्तारो वर विमाणाणि ॥६६॥ M अर्थ- आदित्य इन्द्रककी पूर्वादिक दिशाओं में लक्ष्मी, लक्ष्मीमालिनी, वस्त्र और वष्त्रावनि, ये चार उत्तम विमान हैं ।। ९६ ।।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy