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गाथा । ९४ - ९७ ]
म महाहिया
गगणं सुज्जं सोमं कंचन-णवत्त-वंदना अमलं । विमलं गंदण - सोमणस - सायरा उविय समुदिया नामा ॥ ६४ ॥
१३ ।
धम्मवरं वेसणं, कण्णं कणयं णामेण लोयकंसं
गंदीसरयं
५।
श्रमवभासं तहेब सिद्ध तं । इगिसट्ठी सेढि बद्धाणि ॥६६॥
६ ।
अलकंतं रोहिदयं कुंडल सोमा एवं
तहा य मूदहिदं ।
अमोघपासं च ॥६५॥
कलश 5,
अर्थ- संस्थित नामक १, श्रीवत्स २ वृत्त ३, कुसुम ४, चाप ५, छत्र ६, अञ्जन ७, वृषभ, सिंह १०, सुर ११, असुर १२, मनोहर १३, भद्र १४, सर्वतोभद्र १५, दिक्स्वस्तिक १६, अंदिश १७, दिगु १८ वर्धमान १६, मुरज २०, अभयेन्द्र २१, माहेन्द्र २२० उपार्ध २३, कमल २४, कोकनद २५, चक्र २६, उत्पल २७, कुमुद २८, पुण्डरीक २९, सोमक ३०, तिमिस्रा ३१, अंक ३२, स्वरान्त ३३, पास ३४, गगन ३५, सूर्य ३६, सोम ३७, कंचन ३८, नक्षत्र ३९, चन्दन ४०, अमल ४१ विमल ४२, नन्दन ४३, सौमनस ४४, सागर ४५, उदित ४६, समुदित ४७, धर्मबर ४८, वैश्रवण ४९. कर्ण ५०. कनक ५१ तथा भूतहित ५२, लोककान्त ५३, सरय ५४, प्रमोघस्पर्श ५५, जलकान्त ५६, रोहितक ५७, अमितभास ५८ तथा सिद्धान्त ५६, कुण्डल ६० और सौम्य ६१ इसप्रकार ( ऋतु इन्द्रककी पूर्व दिशा सम्बन्धी ) ये इकसठ श्र ेणीबद्ध विमान हैं ।।९१-९६॥
ऋतु इन्द्रक सम्बन्धी श्र ेणीबद्ध विमानोंके नाम
पुरिमावली-पवण्णिव संठिय-पहुवीस तेसु पत्तेक्कं ।
रिणय णामेसु मज्झिम- श्रावत्त-विसि श्राइ जोएन ||१७||
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( ४६३
अर्थ - पूर्वं पंक्ति में वरिंगत उन संस्थित आदि श्रणीबद्ध विमानों में से प्रत्येक के अपने-अपने नाममें मध्यम, श्रावर्त और विशिष्ट आदि जोड़ना चाहिए ।। ९७ ।।
विशेषायें - ऋतु इन्द्रक विमान मध्यमें है। इसकी पूर्वादि दिशाओं में ६२ - ६२ श्रणीबद्ध विमान हैं। जिनके क्रमशः नाम इसप्रकार हैं
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