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________________ ४६२ ] तिलोय पण्णत्ती उप-उडुमज्झिम- उडु - आवत्तय उड्डु - विसिष्टु- रामहि । इं वयस्स एवे, पुण्वादि - पवाहिणा' होवि ॥ ८७॥ 4 उड्ड अर्थ — ऋतुप्रभ, ऋतुमध्यम, ऋतु आवर्त और ऋतु - विशिष्ट, ये चार श्रेणीबद्ध विमान ऋतु इन्द्रक के समीप पूर्वादिक दिशाओं में प्रदक्षिण- क्रमसे हैं ||२७|| विमलप - विमल मज्झिम, विमलावत्तं खु विमल - णामम्मि । विमल - विसिट्ठो तुरिमो, पुण्वादि पदाहिणा होदि ॥८६॥ [ गाथा : ८७-१३ अर्थ – विमलप्रभ, विमलमध्यम, विमलावर्त और चतुर्थ विमलविशिष्ट, ये चार श्रेणीबद्ध विमान विमल नामक ( दूसरे ) इन्द्रकके आश्रित पूर्वादिक प्रदक्षिण- क्रम से हैं ||८|| · एवं चंदादोणं, णिय- णिय-रणामाणि सेढिबद्ध सु । पढमेसु पह- मज्झिम - श्रावत्त-बिसि-जुत्तानि ॥ ८६ ॥ अर्थ- इसीप्रकार चन्द्रादिक इन्द्रकोंके आश्रित रहनेवाले प्रथम श्रेणीबद्ध विमानोंके नाम प्रभ, मध्यम, आवर्त और विशिष्ट इन पदोंसे युक्त अपने-अपने नामोंके अनुसार ही हैं |१८९|| उडु इदय पुव्वादी, सेडिगया जे हवंति बासको 1 ताण बिदियावी, एक्क-बिसाए भणामो गामाई ॥ ६० ॥ अर्थ - ऋतु इन्द्रककी पूर्वादिक दिशाओंमें जो बासठ श्र ेणीबद्ध हैं उनके द्वितीयादिकों के एक दिशा के नाम कहते हैं ||२०|| संठियामा सिरिवच्छ वट्ट-नामा य कुसुम- जावाणि । छतंजण - कलसा * बसह- सीह- सुर-असुर-मणहरया ।।१।। १३ । भद्द सव्वदोभद्द, दिवसोत्तिय दिगु वड्डमरण-मुरजं, "अब्भय ९ । १-२. द. ब. क. ज. उ. पचाहिये । कलास। ५. व. व. क. . ठ प्रभ । - दिसाभिघारणं च । इषो महिवो य ॥ ६२ ॥ तह य उवढं कमलं, कोकणदं चक्क मुप्पलं कुमुदं । पुंडरिय-सोमयारिंग, तिमिसंक सरंत पासं च ॥ ६३ ॥ १२ । ३. व ब. क. ज ठ चउदादीरणं । ४. व. व. क. ज. ठ.
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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