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गाथा | ८२-८६ ]
अम महाहियारो
ऋतु इन्द्रादिके श्रीबद्ध विमानोंके नाम एवं उनका विन्यास क्रम
वाण इंबयाणं, चउसु दिसासु पि सेहि-बद्धारिंग । चारि व विदिसासु, होवि पहण्णय-विमरणाश्रो || ८२ ॥
अर्थ
- सब इन्द्रक विमानोंकी चारों दिशाओं में श्र ेणीबद्ध और चारों हो विदिशाओं में प्रकीर्णक विमान होते हैं ||२||
उडु-णामे पत्तेक्कं, सेढि गवा चउ - दिसासु बासट्ठी । एक्षा सेसे, पडिदिसमाइच्च' परियंतं ॥८३॥
अर्थ - ऋतु नामक विमानकी चारों दिशाओं में से प्रत्येक दिशा में बासठ श्र ेणीबद्ध हैं । इसके श्रागे आदित्य इन्द्रक पर्यन्त शेष इन्द्रकों की प्रत्येक दिशा में एक-एक कम होता गया है || ८३ ||
जड़-गामे सेदिगण, एक्षक-विसाए होदि तेसट्ठी । एक्के कूणा सेसे, जाय य सव्वसिद्धि त्ति ॥ ८४ ॥
( पाठान्तरम् )
अर्थ - ऋतु नामक इन्द्रक बिमानके प्राश्रित एक-एक दिशा में तिरेसठ श्रेणीबद्ध विमान हैं । इसके श्रागे सर्वार्थसिद्धि पर्यन्त शेष विमानों में एक-एक कम होता गया है ||६४ ||
( पाठान्तर )
बासट्ठी सेढिगया, पभासिवा सय्य वि चउद्दिसमेव केवलं
जेहि तान जबसे ।
सेठि बद्धाय ॥६५॥
अर्थ - जिन आचार्याने ( ऋतु विमानके श्राश्रित प्रत्येक दिशा में ) बासठ श्र ेणीबद्ध विमानोंका निरूपण किया है उनके उपदेशानुसार सर्वार्थसिद्धि विमानके प्राश्रित भी चारों दिशाओं में एक-एक श्र ेणीबद्ध विमान है ||५||
पढमंबय-पहूदीदो, पीदिकर णाम इंदयं जाव ।
तेसु चसु बिसालु सेठि गाणं इमे णामा ॥ ८६ ॥
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१. द. ब. ज. ठ माइच्चस्स ।
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अर्थ - प्रथम इन्द्रकसे लेकर प्रीतिङ्कर नामक ( ६१ वें ) इन्द्रक पर्यन्त चारों दिशाओं में उनके आश्रित रहनेवाले श्र ेणीबद्ध विमानोंके नाम ये है ।। ८६ ।।