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________________ ४५८ ] तिलोयपण्णत्ती [ गाथा : ७३-७७ इगियालुत्तर-सग-सय, सत्तद्वि-सहस्स-जोयण छ-सखा । उणतोस - कला कहियो, विस्थारो सुप्पबुद्धस्स ॥७३॥ ६६७७४१ । । अर्ष-सुप्रबुद्ध इन्दकका विस्तार छह लाख सड़सठ हजार सात सौ इकतालीस योजन और उनतीस कला अधिक ( ६६७७४१३६ यो०) कहा गया है ।।७३।। चउहत्तरि-जुव-सग-सय, छण्णउदि-सहस्स पंच-लक्खाणि । जोयणया छच्च कला, जसहर - णामस्स विषखंभो ।।७४।। ५६६७७४ । । पर्थ- यशोधर नामक इन्द्रकका विस्तार पांच लाख छयानबै हजार सात सौ चौहत्तर योजन और छह कला अधिक ( ५९६७७४ , योजन ) है ।।७४।। छज्जोयण अटू-सया, पणुवीस-सहस्स पंच-लक्याणि । चोड्स-फलाओ वासो, सुभद्द - णामस्स 'परिमाणं ॥७॥ ५२५८०६ ।। मयं-सुभद्र नामक इन्द्रकका विस्तार पांच लाख पच्चीस हजार पाठ सौ छह योजन और चौदह कला अधिक ( ५२५८०६ यो० ) है ॥७५।। अट्ठ-सया अडतीसा, लक्खा चउरो सहस्स चउवण्णा । मओयणया बावीस, अंसा सुविसाल विखंभो ॥७६॥ ४५४८३८ । अर्थ-सुविशाल इन्द्रकका विस्तार चार लाख चौवन हजार आठ सौ अड़तीस योजन और बाईस भाग ( ४५४८३८३ यो० ) प्रमाण है ।।७६।। सत्तरि-जुव-अद्व-सया, लेसीवि-सहस्स जोयण-ति-लक्या । तीस - कलाश्रो सुमणस - णामस्स हवेवि विस्थारो ॥७७॥ ___३८३८७० । । प्रर्य-सुमनस नामक इन्द्रकका विस्तार तीन लाख तेरासी हजार आठ सौ सत्तर योजन और तीस कला ( ३८३८७०४ यो०) प्रमाण है ।।७७।। १.६.ब.क. ज.ठ, पादयो।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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