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________________ गाया 1 ६८-७२ ] अट्ठमो महाहियारो [४५७ वस-जोयण-लक्खाणि, बावीस-सहस्स पणुसया सोती । वीस-कलापो , सायंकर'- इदयस्स हादध्वं ॥६॥ १०२२५८० ।।। अर्थ-शांतकर इन्द्रकका विस्तार दस लाख बाईस हजार पांच सौ अस्सी योजन और बीस कला अधिक (१०२२५८० योजन ) जानना चाहिए ॥६॥ णव-जोयण-लक्खाणि, इगिवण्ण-सहस्स छ-सय बारसया। अट्ठावीस कलाओ, धारण - WHEस विस्था ॥६६॥ ९५१६१२ । । । अर्थ-आरण इन्द्रकके विस्तारका प्रमाण अंक-क्रमसे नौ लाख इक्यावन हजार छह सौ बारह योजन पोर अट्ठाईस कला ( ९५१६१२॥ योजन ) जानना चाहिए ॥६९॥ अट्ट चिय लक्खाणि, सीवि-सहस्साणि 'छस्सयाणि च । पणवाल - जोयणाणि, पंच - कला अच्चुबे ९ ॥७॥ ___ ८८०६४५ । । अर्थ-अच्युत इन्द्रकका विस्तार पाठ लाख अस्सी हजार छह सौ पैंतालीस योजन और पाँच कला अधिक ( ८८०६४५३ यो० ) है ।।७।। अg चिय लक्खाणि, णव य सहस्साणि छस्सयाणि च । सत्तत्तरि जोयणया, तेरस - अंसा सुदंसणे रुवं ॥७१।। ८०९६७७ । ३३। मर्थ—सुदर्शन इन्द्रकका विस्तार पाठ लाख नौ हजार छह सौ सतत्तर योजन और तेरह भाग अधिक ( ८०९६७७१ यो० ) है ।।७१॥ गव-जोयण सत्त-सया, 'अडतीस-सहस्स सर-लक्खाणि । इगिवीस कला , अमोघ - णामम्मि इदए होदि ॥७२॥ ७३८७०६ । । अर्थ-अमोघ नामक इन्द्रकका विस्तार सात लाख अड़तीस हजार सात सौ नौ योजन और इक्कीस कला अधिक (७३८७०९३१ योजन ) है ॥७२॥ १.प. ज. 8. सर्यकरा, क. सयंकर । २. द. ब. क. छस्सयाणं। ३. द. ब. बरसीसि ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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