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________________ ४५६ ] तिलोयपण्णत्ती [ गाथा : ६३-६७ तेरस-जोयण-लक्खा, चउ-सय सत्तत्तरी-सहस्साणि । उणवीसं एक्कारस, कलाओ महसषक - विक्खंभो ॥६३॥ १३७७४१९ । । मर्थ - महाशुक्र इन्द्रकका विस्तार तेरह लाख सतत्तर हजार चार सौ उन्नीस योजन और ग्यारह कला अधिक { १३७७४१९३५ यो० ) है ।।६३।। तेरस-जोयण-लक्खा, चउसटिठ-सयाणि एक्कवण्णाय । एक्कोणवीस - अंसा, होदि सहस्सार - विस्थारो ॥६॥ १३०६४५१ । । अर्थ-सहस्रार इन्द्रकका विस्तार तेरह लाख छह हजार चार सौ इक्यावन योजन और उन्नीस भाग अधिक ( १३०६४५१॥ यो० ) है ।।६४।। लक्खाणि बारसं चिय, परगतीस-सहस्स-चउ-सयाणि पि । तेसीवि जोयणाई, सगवोस - कलामो प्राणवे रु ॥६५॥ १२३५४८३ । । । पर्थ-पानत इन्द्रकका विस्तार बारह लाख पैंतीस हजार चार सौ तेरासी योजन और सत्ताईस कला अधिक ( १२३५४८३३ योजन ) है ॥६५।। एक्कारस-सपाणि, चउसद्वि-सहस्स पणुसयाणि पि । सोलस य जोयसारिण, पत्तारि कलाप्रो पाणवे ॥६६॥ ११६४५१६ । । अर्थ-प्रारणत इन्द्रकका विस्तार ग्यारह लाख चौंसठ हजार पांच सौ सोलह योजन और चार कला अधिक ( ११६४५१६४ योजन ) है ।।६६।। लक्खं बस-प्पमाणं, तेणउदि-सहस्स पण-सयाणि च । अडवाल - जोयणाई, वारस • अंसा य पुष्फगे रदं ।।६।। १०६३५४८ । । अर्म-पुष्पक इन्द्रकका विस्तार दस लाख तेरान हजार पाँच सौ अड़तालीस योजन और बारह भाग अधिक ( १०९३५४८१ योजन ) है ॥६७।।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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