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________________ गाथा : ५८-६२ ] अट्ठमो महाहियारो [ ४५५ प्रर्ष-अरिष्ट इन्द्रकका विस्तार अठारह लाख तीन हजार दो सौ पच्चीस योजन और पच्चीस कला अधिक ( १८०३२२५३५ योजन ) है ।।५७।। अट्ठावण्णा दु-सया, बत्तीस-सहस्स सत्तरस-लक्खा। जोयणया योणि कला, वासो सुरसमिदि-णामस्स ॥५॥ १७३२२५८ ।।। अर्थ–सुरसमिति नामक इन्द्रकका विस्तार सत्तरह लाख बतीस हजार दो सौ अट्ठावन योजन और दो कला अधिक ( १७३२२५८0 योजन ) है ।।५८॥ सोलस-जोयण-लक्खा, इगिसद्वि-सहस्स दु-सय-ण उदीयो। वस - मेसानो कलाओ, बम्हिदय - रुद - परिमारणं ॥५६।। १६६१२९० । । । अर्थ-ब्रह्म इन्द्रकके विस्तारका प्रमाण सोलह लाख इकसठ हजार दो सौ नब्ब योजन और दस कला अधिक ( १६६१२६०१६ योजन ) है ।। ५६।। बायोस-ति-सय-जोयण, उदि-सहस्साणि पण रस-लक्खा । अद्वारसा कलाओ, बम्हुत्तर - इंवए वासो ॥६०।। १५९०३२२ । । अर्भ-ब्रह्मोत्तर इन्द्रकका विस्तार पन्द्रह लाख नब्बे हजार तीन सौबाईस योजन और अठारह कला अधिक ( १५९०३२२ योजन ) है ।।६०।। च उवण्ण-ति-सय-जोयण, उणवीस-सहस्स पण्ण रस-लक्खा । छन्वीसं च कलाओ, वित्थारो ब्रह्महिन्यस्स ॥६१॥ १५१९३५४ । । मर्थ-ब्रह्महृदय इन्द्रकका विस्तार पन्द्रह लाख उन्नीस हजार तीन सौ चौवन योजन और छब्बीस कला अधिक ( १५१६३५४३१ योजन ) है ॥६१।। चोहम-जोयरण-लक्खं, पडदाल-सहस्स-ति-सय-सगसीको । तिषिण कलाओ लंतव - इंदस्स बस्स परिमारणं ॥६२।। १४४८३८७ । अर्थ-लान्तव इन्द्रकके विस्तारका प्रमाण चौदह लाख अड़तालीस हजार तीन सौ सत्तासी योजन और तीन कला अधिक ( १४४८३८७४, योजन ) है ।।१२।।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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