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________________ ४५४ ] तिलोयपण्णत्ती [ गाथा : ५२-५७ इगिवीसं लक्खाणि, अट्ठावण्णा सहस्स जोयणया । चउसट्टी-संजुत्ता, सोलस अंसा य णाग-वित्थारो ॥५२॥ २१५८०६४ । । । अर्थ-नाग इन्द्रकका विस्तार इक्कीस लाख अट्ठावन हजार चौंसठ योजन और सोलह भाग अधिक ( २१५८०६४३६ योजन ) है ॥५२।। जोयणया छण्णउदी, सगसीदि-सहस्स-वीस-लक्खाणि । चयोस - कला एवं, गडिदय - रुव - परिमाणे ॥५३॥ २०८७०९६ । । अर्थ-गरुड़ इन्द्रकके विस्तारका प्रमाण बीस लाख सत्तासी हजार छयानवै योजन और चौबीस कला अधिक ( २०५७०९६३ यो० ) है ॥५३॥ सोलस-सहस्स-इमिसय-उणवीसं वीस-लक्ख-जोयणया। एक्क - कला विक्खंभो, लंगल - णामस्स गावव्यो ॥५४॥ २०१६१२६ ।।. अर्थलांगल नामक इन्द्रकका विस्तार बीस लाख सोलह हजार एक सौ उनतीस योजन और एक कला प्रधिक ( २०१६१२९ योजन ) जानना चाहिए ॥५४॥ एक्कोणवीस-लक्खा, पणदाल-सहस्स इगिसयाणि च । इगिसट्रि-जोयणा णव, कलाप्रो बलभद्द - वित्थारो ॥५५॥ १९४५१६१ । । प्रम-बलभद्र इन्द्रकका विस्तार उन्नीस लाख पैतालीस हजार एक सौ इकसठ योजन और नौ कला अधिक ( १९४५१६१४ योजन ) है ॥५५।।। घउहतरि सहस्सा, इगिसय-तेणउदि अदरस लक्खा । जोयणया सत्तरसं, फलानो चक्कस्स वित्थारो ॥५६॥ १८७४१६३ । । प्रथ-चक्र इन्द्रकका विस्तार अठारह लाख चौहत्तर हजार एक सौ तेरान योजन और सत्तरह कला अधिक ( १८७४१९३४ योजन ) है ॥५६॥ अद्वारस-लक्खाणि, ति-सहस्सा पंचवीस-जुब-बु-सया । जोयणया पणुवीसा, कलाप्रो रिटुस्स विक्खंभो ॥५७।। १८०३२२५ । । ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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