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गाथा : ४७-५१ ]
महाहियारो
पणुवीसं लक्खाणि, तेसीबि सहस्स अड-सयाणि पि ।
सत्तरिय 'जोयणाणि, तीस फला पिट्ठके वासो ॥ ४७ ॥
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२५८३८७० |
अर्थ - पृष्ठक इन्द्रकका विस्तार पच्चीस लाख तेरासी हजार आठ सौ सत्तर योजन और तीस कला प्रमाण ( २५८३८७०३ योजन ) है ||४७ ||
बारस-सहस्त-णव-सय-ति-उत्तरा पंचवीस- लक्खाणि । जोयणए सत्तंसा, गजाभिषारणस्स विक्खंभो ||४८ ||
[ ४५३
२५१२६०३ । ।
अर्थ- गज नामक इन्द्रकका विस्तार पच्चीस लाख बारह हजार नौ सौ तीन योजन और सात भाग अधिक ( २५१२९०३५ योजन ) है || ४८ ||
चवीसं लक्खाणि इगिवाल- सहस्स - णव - सारंगपि ।
पणतीस जोयणाणि, पण्णरस-कलाओ *मित्त - वित्थारो ।।४६ ॥
२४२३५१३५ । ६
अर्थ-मित्र इन्द्रकका विस्तार चौबीस लाख इकतालीस हजार नौ सौ पैंतीस योजन और पन्द्रह कला अधिक ( २४४१९३५१ योजन ) है ।। ४९ ।।
तेवीसं लक्खाणि णय-सय-जुत्ताणि सत्तरि सहस्सा । सत्तट्टि - जोयणाणि तेवीस -कलाओ पय- विस्थारो ॥५०॥
२३७०९६७ । १ ।
अर्थ-प्रभ इन्द्रकका विस्तार तेईस लाख सत्तर हजार नौ सौ सड़सठ योजन और तेईस कला अधिक ( २३७०९६७ ) है ||५० ||
तेवीस - लक्ख दो, अंजणए जोयणाणि वणमाले ।
दुग-तिय-ह-य-दुग-दुग-दुगंक-कमसो कला श्रट् ॥ ५१ ॥
२३००००० । २२२९०३२ । १६ ।
अर्थ
- अञ्जन इन्द्रकका विस्तार तेईस लाख ( २३००००० ) योजन और वनमाल इन्द्रकका विस्तार दो, तीन, शून्य, नौ, दो, दो और दो इस अंक क्रमसे बाईस लाख उनतीस हजार बत्तीस योजन तथा आठ कला अधिक ( २२२९०३२३५ योजन ) है ।।५१ ॥
१. ५. ब. क. जोमाणि बत्तीस । २. ब. पमित्त । ३. द. दुगदुगगं कम रककमसो ।