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________________ ४५२ ] तिलोयपणती [ गापा । ४२-४६ प्रयं-हारिन नामक इन्द्रकका विस्तार तीस लाख नौ हजार छह सौ सतत्तर योजन और तेरह कला अधिक ( ३००९६७७ योजन ) है ॥४१।। एक्कोणतीस-लक्खा, अडतीस-सहस्स-सग-सयारिंग छ । णव जोयणाणि अंसा, इगिवीस पचम - वित्यारो ॥४२।। २६३८७०९। । प्रयं--पम इन्द्रकका विस्तार उनतीस लाख अड़तीस हजार सात सौ नो योजन और इक्कीस भाग अधिक ( २६३८७०९३१ योजन ) है ।।४२॥ अट्ठावीसं लक्खा, सगसट्ठी-सहस्स-सग-सयाणि पि । इगिवाल-जोयणाणि, कलामो उणतीस लोहिवे वासो॥४३॥ २८६७७४१ । . ई-लोहित इन्द्राको विस्तार अट्ठाईस साल सड़सठ हजार सात सौ इकतालीस योजन और उनतीस कला अधिक ( २८६७७४१३५ योजन ) है ॥४३॥ सत्तावीसं लक्ला, छण्णउदि-सहस्स-सग-सयाणि पि । पउहत्तरि-जोयगया, छ-कलाओ वज - विक्खंभो ॥४४॥ २७९६७७४। । अर्थ-वज्र इन्द्रकका विस्तार सत्ताईस लाख छयानबे हजार सात सौ चौहत्तर योजन और छह कला अधिक ( २७९६७७४४ योजन ) है ।।४४॥ सगवीस-लक्ख-जोयण, पणवीस-सहस्स अडसयं छक्का। . घोड्स कलामो कहिवा, गंदावट्टस्स विखंभो ॥४५॥ २७२५८०६ ।।। अर्थ--नन्द्यावतं इन्द्रकका विस्तार सत्ताईस लाख पच्चीस हजार आठ सौ छह योजन और चौदह कला अधिक ( २७२५८०६ योजन ) कहा गया है ।।४।। छव्वीसं चिय लक्खा, चउवण्ण-सहस्स-अउ-सयाणि पि। अस्तीस - जोयणाणि, बावीस - कला पहंकरे ॥४६॥ २६५४८३८ । । अर्थ-प्रभंकर इन्द्रकका विस्तार छब्बीस लाख चौवन हजार आठ सौ पड़तीस योजन और बाईस कला प्रमाण (२६५४८३०१ योजन ) है ।।४६।।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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