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गाया : ३७-४१ ]
अमो महाहियारो
[ ४५१
अर्थ - अंक इन्द्रकका विस्तार तैंतीस लाख चौंसठ हजार पाँच सौ सोलह योजन और चार कला अधिक (३३६४५१६६२ योजन ) है ।। ३६ ।।
बत्तीसं चिय लषखा, तेरा उबि- सहस्स पण सर्यााणि पि ।
अडदाल-जोयस्पाणि, बारस-भागा फलिह रुदो ॥३७॥
३२९३६४०६
अर्थ- स्फटिक इन्द्रकका विस्तार बत्तीस लाख तेरानबे हजार पाँच सौ अड़तालीस योजन
,
और बारह भाग अधिक ( ३२९३५४८३ योजन ) है ||३७||
बसोस - लक्ख-जोयण, बाधीस - सहस्स-परा-सया सीवी ।
अंसा य वीसमेत्ता, रुंदी तवणिज्ज णामस्स ॥ ३८ ॥
३२२२५८० । ३१ ।
अर्थ- तपनीय नामक इन्द्रकका विस्तार बत्तीस लाख बाईस हजार पाँच सौ अस्सी योजन और बीस भाग प्रमाण अधिक (३२२२५८०३योजन ) है ||३८||
इगितीस लवल-जोयण, इगिवण्ण-सहस्स-छ-सय-बारं च । अंसा मेघ णामस्स || ३६॥
'अट्ठावीसं
वित्थारो
३१५१६१२ । ३१ ।
अर्थ – मेघ नामक इन्द्रकका विस्तार इकतीस लाख इक्यावन हजार छह सौ बारह योजन
और अट्ठाईस भाग अधिक ( ३१५१६१२ योजन ) है ||३६||
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तीस चिय लक्खाण, सोदि-सहस्साणि इस्सयाणि च । परवाल- जोयणाणि, पंच कला अम्भ - इंबए वासो ||४०||
३०८०६४५ । । ।
- इन्द्रकका विस्तार तीस लाख अस्सी हजार छह सौ पैंतालीस योजन भीर पाँच कला अधिक (३०८०६४५ यो० ) है ||४०||
१. द. क. अट्ठावीसा 1
सससरि-व-छ-सया, एव य सहस्वाणि तीस- लक्खाणि । जोपणया तह तेरस, कलाओ हारिद्द विषवंभो ॥४१॥
३००९६७७ । ३ ।