SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 518
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४५० ] तिलोयपण्णत्ती [ माथा ! ३२-३६ अर्थ-मरुत् इन्द्रकके विस्तारका प्रमाण सैंतीस लाख उन्नीस हजार तीन सौ चौवन योजन और छब्बीस कला अधिक ( ३७१९३५४॥ योजन ) है ।।३१।। छत्तीसं लक्खाणि, पडदाल-सहस्स-ति-सय-जोयणया। सगसीदी तिष्णि-कला, रिद्धिस'-रुदस्स परिसंखा ॥३२।। ३६४१३८७ । । प्रयं-ऋद्धीश इन्द्रकके विस्तारका प्रमाण छत्तीस लाख अड़तालीस हजार तीन सौ सत्तासी योजन और तीन कला अधिक ( ३६.४८३८७ योजन ) है ॥३२॥ सत्तरि सहस्सा, चउस्सया पंचतीस - लक्खारिंग । उणवीस-जोयणाणि, एक्करस-कलामो बेरुलिय-रई ॥३३॥ ३५७७४१६ । । । अपं-वैडूर्य इन्द्रकका विस्तार पैतीस लाख सतत्तर हजार चार सौ उन्नीस योजन और ग्यारह कला अधिक ( ३५७७४१६१ योजन ) है ।।३३।। पंचत्तीसं लक्खा, छ-सहस्सा चउ-सयाणि इगिवण्णा । जोयणया उणवीसा, कलाप्रो रुजगस्स वित्थारो ॥३४॥ ३५०६४५१ । । अर्थ-रचक इन्द्रकका विस्तार पेंतीस लाख छह हजार चार सौ इक्यावन योजन और उन्नीस कला अधिक ( ३५०६४५११६ यो०) है ।।३४।। चउतीसं लक्खाणि, पगतोस-सहस्स-चउसयाणि पि । तेसोवि जोयणाणि, सगवीस-कलाओ रुचिर-विस्थारो॥३५॥ ३४३५४८३ । ३। अर्थ-रुचिर इन्द्रकका विस्तार चौंतीस लाख पैतीस हजार चार सौ तेरासी योजन और सत्ताईस कला अधिक { ३४३५४८३३५ योजन ) है ॥३५।। तेसीसं लक्खाणि, चउसटि-सहस्स-पण-सयाणि पि । सोलस य जोयणाणि, चत्तारि कलामो अंक-विस्थारो॥३६॥ ___३३६४५१६ । । १, ६.ब. क. ज. 3. दिदस ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy