SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 527
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गाणा: ७.--.1 अमो महाहियारो [ ४५९ बारस-सहस्स णव-सय, ति-उत्तरा जोयरपाणि तिय-लक्खा । सत्त • कलाओ वासो, सोमरणसे इंवए भणिवो ॥७॥ ३१२९०३ । । प्रर्ष-सौमनस इन्द्रकका विस्तार तीन लाख बारह हजार नौ सौ सीन योजन और सात कला ( ३१२९०३३ योजन) प्रमाण कहा गया है ।।७८।। पणतीसुत्तर-णय-सय, इगिवाल-सहस्स जोयण-दु-लक्खा । पण्णरस - कला संवं, पौविकर - ईदए कहिदो ॥७॥ २४१९३५ । । अर्थ-प्रीतिकर इन्द्रकका विस्तार दो लाख इकतालीस हजार नौ सौ पैंतीस योजन और पन्द्रह कला ( २४१९३५ यो०) प्रमाण कहा गया है ।।७९।। सप्तरि-सहस्स णव-सय, सत्तट्ठी-जोयणाणि इगि-लक्खा। तेवीसंसा वासो, प्राइमचे इंदए होदी ॥०॥ १७०९६७ । । अर्थ-आदित्य इन्द्रकका विस्तार एक लाख सत्तर हजार नौ सौ सड़सठ योजन और तेईस कला ( १७०९६७१ योजन ) प्रमाण है ।।८।। एक्कं जोयण - लक्ख, वासो सम्वसिद्धि-णामस्स । एवं सेसट्ठीणं, वासो सिट्ठो सिसूण बोह ॥१॥ १०००००। ६३ । प्रयं-सर्वार्थ सिद्धि नामक इन्द्रकका विस्तार एक लाख ( १००००० ) योजन प्रमाण है। इसप्रकार तिरेसठ (६३) इन्द्रकोंका विस्तार शिष्योंके बोधनार्थ कहा गया है ।।१।। समस्त इन्द्रक विमानोंका एकत्रित विस्तार इस प्रकार है [ तालिका अगले पृष्ठ पर देखिए ]
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy