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________________ गाथा : ६१९-६२२ ] सत्तमो महाहियारो [ ४४१ _ जगत्प्रतर संख्यात (७) - जगत्प्रतर या । ६५५३६ सर्व ज्योतिषीदेवोंका "प्रतरांगुल ४६५५३६४७ ०४६५५३६ - प्रमाण है। नोट-ज्योतिषी देवोंके बिम्बोंका प्रमाण निकालते समय प्राचार्य देवने संक्षिप्त करने हेतु यहाँ कुछ संख्याओंका भन्तर्भाव संख्यातमें कर दिया है। इसका विशेष विवरण सन् १९७६ में प्रकाशित त्रिलोकसार गाथा ३६१ की टीकामें द्रष्टव्य है । ज्योतिषी देवोंकी प्रायुका निरूपणचंबस्स सद - सहस्सं, रविणो सवं च सुक्कस्स । वासाधिएहि पल्लं, तं' पुण्णं घिसण - णामस्स ॥६१६॥ सेसाणं तु गहाणं, पल्लख पाउगं मुणेदव्यं । ताराणं तु जहण्णं, पावद्ध पारमुक्कस्सं ॥६२०॥ प १ । व १००००० । ११ । १७७० ११ १२ १६० । ५११६६५३ पाऊ समत्ता ॥ मथं-चन्द्रको उत्कृष्टायु एक लाख वर्ष अधिक एक पल्य ( १ पल्य+१००००० वर्ष ), सूर्यकी एक हजार वर्ष अधिक एक पल्य ( १ पल्य+१०००), शुक्र ग्रहकी १०० वर्ष अधिक एक पल्य (१ पल्य+१०० वर्ष) और गुरुकी उत्कृष्टायु एक पल्य-प्रमाण है। शेष ग्रहोंकी-उत्कृष्टायु अर्थपख्य प्रमाण है और ताराओंकी उत्कृष्टायु पल्यके चतुर्थभाग ( : पल्य ) प्रमाण है तथा सर्व ज्योतिषी देवोंको जघन्यायुका प्रमाण पल्यके आठवें भाग (पल्य) है ॥६१९-६२०॥ इसप्रकार प्रायुका कथन समाप्त हुआ ।।८।। आहार आदि प्ररूपणाओंका दिग्दर्शनआहारो उस्सासो, उच्छेहो प्रोहिगाण - सत्तीओ । जीवाणं उप्पत्ती - मरणाई एक्क - समयम्मि ॥६२१॥ आऊ-बंधण-भावं, वंसण - गहणस्स कारणं विविहं । गुणठाणावि - पक्षणण, भावणलोमो ग्य बसवं ॥२२॥ १. द. क. ज. ते घुट्ट वरिसणामस्स, ब. ते पुटुरिसणामस्स ।
SR No.090506
Book TitleTiloypannatti Part 3
Original Sutra AuthorVrushabhacharya
AuthorChetanprakash Patni
PublisherBharat Varshiya Digambar Jain Mahasabha
Publication Year
Total Pages736
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Geography
File Size15 MB
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